निशा दिवस मैं खोज रहा हूँ

ओ शतरूपे एक तुम्हारी चुप ने कितने प्रश्न उठाए
उनके उत्तर बीजगणित में निशा दिवस मैं खोज रहा हूँ

रहे प्रश्न प्रत्यक्ष, न​हीं है मुश्किल उनके ​ उत्तर देना
बिना किए प्रश्नों के उत्तर होते शत सहस्त्र सम्भावित
असमंजस के गहरे साये घेरे रहते हैं मानस को
जोड़ गुणा के समीकरण में हो न सके कु​छ  भी अनुमानित

नए सूत्र अन्वेषित करता, अंकगणित के विस्तारों में
कोई भी निष्कर्ष न निकला कितनी करता शोध रहा हूँ

कमल लोचने, नयन भंगिमा कितने चक्रव्यूह रच देती
वृत्त,धुरी में,पंखरियों में कितने प्रश्न समाहित होते
अभिमन्यु मन कोशिश करते करते आख़िर थक जाता है
लेकिन जाल बिछे प्रश्नो के, ​ले​श मात्र भी सुलझ न पाते

शतरंजी खानों में होती गुणित विषमताएँ प्रश्नो की
समझ सकूँगा उत्तर का कुछ अता पता भी, सोच रहा हूँ

बिना शब्द की ऊँगली थामे तुमने कितने प्रश्न ​किये हैं ​
दृष्टि वितान मेरा है असफल नापे इनकी सीमा रेखा
जब तक पहला प्रश्न समझ पाने की मैं कोशिश कर पाऊँ
नभ के तारों की संख्या को करते पार इन्हें है देखा

आत्मसमर्पण करता हूँ में सहज तुम्हारे प्रश्नो पर ​बस 
उत्तर दो अब तुम ही इनका, मैं यह कर अनुरोध रहा हूँ

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