नयी सुबह के लिए

नयी सुबह के लिए निरंतर अकुलाती है निशिभर पलकें 
नयी सुबह के लिए किन्तु है संभव ना परिवर्तन कोई 

पीढ़ी दर पीढ़ी आशा के अंकुर बोये हैं क्यारी में 
नयी सुबह जब आएगी तो धूप अधिक चमकीली होगी 
तरल उष्णता की पुरबाई भर लेगी निज आलिंगन में
और पौंछ  देगी वह मोती  जिनसे आँखें गीली होंगी 

लेकिन प्राची ने जब जब भी खोला अपना द्वार हुलस कर 
आई भोर लड़खड़ाती सी,  हो न बरसों से ज्यों सोई  

कल के दिन जैसे ही लिख कर लाई इबारत। सुबह आज की 
कल आई  थी परसों वाला बिम्ब लिए,  तारीख़ बदल कर 
मौसम बदले, ऋतुए बदली , रहा सुबह का यही रवैया 
वासी थकन रही थी ओढ़े बस आ जाती थी मुँह धो कर 

बरसों से आश्वासन की परछाइयों की उंगली थामे 
रही हृदय की सभी  उमंगें  झूठे दिवास्वप्न में खोई 

नए वर्ष में नई सुबह के लिए  हाथ में लिए कटोरा 
अभिलाषाएँ मन्नत माँगा करीं देव के द्वारा जाकर 
बरसों से ख़ाली झोली को देख रहे मन को समझाती
पूर्व जन्म का संचय कुछ भी शेष न था , जो मिलता आकर 

नई सुबह के लिए  प्रतीक्षित कितने युग इतिहास बन गए 
हुई नहीं पर कभी अंकुरित, कितनी बार अपेक्षा बोई 

 

No comments:

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...