दूर क्षितिज पर घिरे हुए अंधियारे की परते खुल जाए
युग के जलते हुए प्रश्न की गुत्थी को थोड़ा सुलझाये
सरगम की विस्तृत सीमा से पहले और बाद जो सुर है
बस ये कोशिश है हम उनके भी स्वर को थोड़ा सुन पाएं
इसीलिये मैं रहे अनछुए अब तक। कुछ ऐसे भावों को
अपने मुट्ठी भर शब्दों की करवट से जोड़ा करता हू
कितने है रहस्य जीवन की लंबी बिछी हुई राहों के
जिनको अनदेखा करते हम आगे आगे बढ़ते आये
किन पगचिन्हों के अनुगामी अनायास हम बन जाते है
और देखता कौन पंथ में छोड़ दिए जो हमने साये
इसीलिये मैं आज मोड़ पर जीवन के इस दो पल ठहरा
अनबूझे कुछ प्रश्नों के अवगुंठन को तोड़ा करता हूँ
मंत्रों के आकार और ध्वनि में उलझे आध्यात्मवाद का
मापदंड क्या हो किसने यह किया यहाँ पर आ निष्पादित
अलग अलग जांचा करती है क्यों मूल्यों को एक कसौटी
इस पर उठे प्रश्न ही क्योंकर, रह रह होते हैं प्रतिबाधित
इसीलिये मैं नियम कसौटी के फिर से मूल्यांकित करता
भटकी हुई सोच को देते सही दिशा मोड़ा करता हूँ
एक शाख पर उगे हुये दो फूलों में क्यों मिले विविधता
एक लक्ष्य को पाती कैसे दो विपरीत दिशा की राहें
एकाकीपन बोया करता है कुछ और अधिक सन्नाटा
और अभीप्सित पाकर भी क्यों जलती रहती तृषित निगाहें
इसीलिये मैं उत्तर पाने की चेष्टा से पूर्व स्वयं को
इन सब के आधार समझने का प्रयत्न थोड़ा करता हूँ
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