हम बढ़ रहे सुनहरे कल की और तुम्हारा है ये
कहना
किंतू तुम्हारे मानचित्र में पंथ सभी है बीते कल के
किंतू तुम्हारे मानचित्र में पंथ सभी है बीते कल के
अरसा बीता भ्रामकता के रंग बिरंगे सपनो में खो
आश्वासन की डोरी के अनुगामी हो होकर के जीते
संध्या का कहना लायेगी रजनी स्वप्न सितारों वाले
आकर देती रही भोर पर, उगते दिन के पन्ने रीते
आश्वासन की डोरी के अनुगामी हो होकर के जीते
संध्या का कहना लायेगी रजनी स्वप्न सितारों वाले
आकर देती रही भोर पर, उगते दिन के पन्ने रीते
फ़ैली आंजुरि में रखती है लाकर हवा नही बादल
को
एक आस अम्बर के आँगन से कोई तो गगरी छलके
एक आस अम्बर के आँगन से कोई तो गगरी छलके
प्राचीरों पर लगी फहरतीं हुई ध्वजा की परछाई
में
रहे बदलते खंडित होती प्रतिमाओं के रह रह चेहरे
उड़ी पतंगे आश्वासन की तोड़ बंधी हाथों से डोरी
बही हवा की पगडंडी पर रही छोड़ती धब्बे गहरे
रहे बदलते खंडित होती प्रतिमाओं के रह रह चेहरे
उड़ी पतंगे आश्वासन की तोड़ बंधी हाथों से डोरी
बही हवा की पगडंडी पर रही छोड़ती धब्बे गहरे
इन्द्रधनुष के जो धुन्धुआते चित्र दिखाते तुम
रह रह कर
उनमे कोई नया नहीं है, बस लाये हो फ्रेम बदल के
उनमे कोई नया नहीं है, बस लाये हो फ्रेम बदल के
ग्रंथों में वर्णित स्वर्णिमता बतलाते तुम परे
मोड़ के
भेजा तुमने उसे निमंत्रण , कल परसों में आ जायेगी
जिस सुबह के इन्तजार म उम्र गुजारा करी पीढियां
आज रात के ढलते ढलते यहां लौट कर आ जायेगी
भेजा तुमने उसे निमंत्रण , कल परसों में आ जायेगी
जिस सुबह के इन्तजार म उम्र गुजारा करी पीढियां
आज रात के ढलते ढलते यहां लौट कर आ जायेगी
साक्षी है इतिहास सदा ही, शायद तुम ही भूल गए हो
कोई लौट नहीं पाया जो गया कभी इस पथ पे चल के
कोई लौट नहीं पाया जो गया कभी इस पथ पे चल के
No comments:
Post a Comment