आप-एक बार फिर


नैन की वीथियों में संवरता रहा
हर निशा में वही सात रंगी सपन
छू गई थी जिसे आपकी दृष्टि की
एक दिन जगमगाती सुनहरी किरण
आगतों के पलों में घुले हैं हुये
पल विगत के रहे जो निकट आपके
आपकी ही छवी से लगा जुड़ गई
ज़िंदगी की मेरी ये चिरंतर लगन
धूप जब भी खिली याद आने लगा आपकी ओढ़नी का मुझे वो सिरा
गुलमुहर की लिए रंगतें,गंध बन जो मलय की सदा वाटिका में तिरा
कोर की फुन्दानियों से छिटकती हुई जगमगाहट दिवस को सजाती हुई
शीश के स्पर्श से ले मुदित प्रेरणा, व्योम में सावनी मेघ आकर घिरा

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अनुपम सौन्दर्य छिटकाते शब्द..

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...