आप--सितम्बर

ट्रेन की सीट पर थे बिखर कर पड़े,कल के अखबार की सुर्खियों में छिपा
शब्द हर एक था कर रहा मंत्रणा,इसलिये नाम बस आपका ही दिखा
जो समाचार थे वे सभी आपकी गुनगुनाती हुई मुस्कुराहट भरे
और विज्ञापनों में सजा चित्र जो वो मुझे एक बस आपका ही लगा
 
 
शोर ट्रेफ़िक का सारा पिघलते हुये, यूँ लगा ढल गया एक ही नाम में
भोर आफ़िस को जाते हुये थी लगा,और यूँ ही लगा लौटते शाम में
पट्ट चौरास्तों पर लगे थे हुये, चित्र जिनमें बने थे कई रंग के
चित्र सारे मुझे आपके ही लगे, मन रँगा यूँ रहा आपके ध्यान में

1 comment:

Udan Tashtari said...

चित्र सारे मुझे आपके ही लगे, मन रँगा यूँ रहा आपके ध्यान में

-हाय!! इतना न सोचो गुरुवर इस शिष्य को...आदेश करो तो हाजिर हुआ जाता हूँ मैं अभी!! :)

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...