दृष्टि की अपनी कलम से लिख दिया तुमने
गीत जो मेरे नयन पर ओ कमल नयने
मैं अधर की थिरकनों में बाँध कर अपने
बस उसी इक गीत को दिन रात गाता हूँ
कुछ अबोले शब्द में जो बाँध कर भेजा
था हजारों पुस्तकों में बन्द सन्देस
धर्म ग्रन्थों में समाहित, लोक गाथायें
स्वर्णमंडित बात में नव रीत उपमायें
साज के बिन जो बिखेरी रागिनी तुमन
साथ उसके पायलों सा झनझनाता हूँ
उंगलियों के पोर ने जो होंठ से लेक
शब्द ढाले भाव की रसगन्ध ले लेकर
अक्षरों के मध्य में सन्देश दुबकाक
बिन सुरों के जो सुनाया है मुझे गाकर
मैं उसी से जो सुवासित हो गये झोंके
का परस करके स्वयं में महक जाता हूँ
नैन के पाटल बनाकर कैनवस तुमने
खींच डाले इन्द्रधनुषी रंग के सपन
जागती अँगड़ाईयों की चाह में भीगे
आ गये बादल उतर कर पास अवनी क
मैं उन्हीं की श्वास को मलयज बना कर के
मन्द गति से साथ उनके थरथराता हूँ
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6 comments:
खींच डाले इन्द्रधनुषी रंग के सपन
जागती अँगड़ाईयों की चाह में भीगे
आ गये बादल उतर कर पास अवनी क
मैं उन्हीं की श्वास को मलयज बना कर के
मन्द गति से साथ उनके थरथराता हूँ
अति सुन्दर.......बहुत सुन्दर गीत
कुछ अबोले शब्द में जो बाँध कर भेजा
था हजारों पुस्तकों में बन्द सन्देस
धर्म ग्रन्थों में समाहित, लोक गाथायें
स्वर्णमंडित बात में नव रीत उपमायें
साज के बिन जो बिखेरी रागिनी तुमन
साथ उसके पायलों सा झनझनाता हूँ
-क्या बात है...शानदार!
bahut sundar...!
बहुत सुन्दर कविता
wah....atulneeya............
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