फिर अधूरा रहा स्वप्न का चित्र वह

आस हर एक जब अजनबी हो गई
रेख जब भाग्य की धुंध में घुल गई
सांस जब धड़कनों से झगड़ती हुई
अपनी ज़िद पे अड़ी, रार पर तुल गई
सिन्धु गहरा निराशा का लहरा हुआ
पीर बन मंदराचल घुमड़ने लगी
कामना थी कि नवनीत मिल जायेगा
अश्रु की आंख से बस झड़ी तब लगी

और फिर हाथ की मुट्ठियों से रिसा
नीर था भूमि में जा सिमटता रहा
फिर अधूरा रहा स्वप्न का चित्र वह,
आज तक रंग मैं जिसमें भरता रहा

एक गंगाजली को लिये था तिमिर
जब उठाई कसम थी रहे साथ में
इसलिये साथ अपना निभाता रहा
सांझ में, भोर में, दोपहर, रात में
एक पल को विलग हो न पाया कभी
सूर्य के तीर जितने चले, व्यर्थ थे
चाँदनी की गली से निकाले गये
दीप सारे अंधेरे के अभ्यस्त थे

और फिर तारकों ने पिघल कर जिसे
था भरा वो गगन दीप हो न सका
इसलिये रात की ड्योढ़ियों से फिसल
सिर्फ़ तम ही गली में था झरता रहा

एक सन्दर्भ से सिलसिले जब जुड़े
चन्द पौधे पनपने लगे आस के
अर्थ की गंध में थे नहाये हुए
फूल हँसते हुए एक विश्वास के
आंधियों ने दिखा पर दिया आईना
शेष कुछ भी नहीं बाग में रह गया
शब्द आकर लटक तो अधर से गया
ज्ञात हो न सका कौन था कह गया

टूटते भ्रम गये स्वर की सीमाओं के,
ज्ञात होने लगा कोई सुनता नहीं
शब्द होकर बहूटी, हवा की तनी
उंगलियां देख, होठों पे मरता रहा

11 comments:

Shar said...

Itna dard aaj, kaviraj !

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

oh! no, narayan narayan

Dr. Amar Jyoti said...

'Our sweetest songs are those,
That tell of the saddest thought.'
बहुत सुन्दर।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

वैसे तो ज़िंदगी में और भी बहुत कुछ है ग़म के सिवा...

आपका ये गीत भी सुंदर आशुकवि...

Shar said...

हँसाया हँस के जब तूने
खिली हँस के उदासी हर,
रुलाया रो के जब तूने
रो पडी आँख प्यासी हर ।

लिखा श्रंगार जब तूने
धो गई चांदनी मरघट,
लिखे जो गीत तू ऐसे
लगे सुधियों की फिर जमघट !

अनुपम अग्रवाल said...

चाँदनी की गली से निकाले गये
दीप सारे अंधेरे के अभ्यस्त थे
इसलिये रात की ड्योढ़ियों से फिसल
सिर्फ़ तम ही गली में था झरता रहा
अत्यन्त उत्तम शब्द और अभिव्यक्ति .बधाई

कंचन सिंह चौहान said...

कविता उत्तम और शार जी का कथन सोने पे सुहागा...!

राकेश खंडेलवाल said...

आपके शब्द आ दे गये प्रेरणा और लिखता रहूँ गुनगुनाता रहूँ
जो हैं अनूभूतियाँ राह बिखरी पड़ीं, शब्द में मैं पिरो कर सजाता रहूँ
आपका प्यार मिलता रहे जो मुझे, और अध्याय खोलूँ नये भाव के
राह की धूल को घुँघरुओं में पिरो, रागिनी नित नई झनझनाता रहूँ.

सादर

राकेश

नीरज गोस्वामी said...

अनमोल रचना...आप लिखते रहें और हम मन्त्र मुग्ध पढ़ते रहें...पढ़ते रहें...पढ़ते रहें...
नीरज

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।

Anonymous said...

एक गंगाजली को लिये था तिमिर
जब उठाई कसम थी रहे साथ में
इसलिये साथ अपना निभाता रहा
सांझ में, भोर में, दोपहर, रात में . . .
yaar, tum ek baat bataao, tum sad-sad ho, ya happy-sad ho? Har teesri-chauthi rachna sad, har paanchvi-chhathi rachna very sad.
yeh kya mazara hai. Thoda light lo yaar :)Hum life 00 jeete hain, 0dete hain, 0 lete hain. Seekhna hai humse? phir tum kahoge ki jo gumnaam hote hain, unka kya naam nahin hota!! hota hai, hota hai, thoda lamba, thoda kathin naam hota hai google nahin deta hai sahi identity.
chalo tumhare liye ek sher likhte hain:
"tum hamin acche lagte ho
ek buddhu bacche lagte ho
jhoot likhte ho sab gazalon mein
bus ankhon se sacche lagte ho"

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...