रश्मियाँ स्वर्णमय हो गईं भोर की

प्रीत का गीत बन गुनगुनाने लगा, शब्द ने छू लिये आपके जो अधर
रश्मियाँ स्वर्णमय हो गईं भोर की, आपने उनको देखा जरा आँख भर
कुन्तलों ने हवाओं की डोरी पकड़, एक ठुमका दिया तो घटा घिर गई
पेंजनी की खनक पर लगीं नाचने,करके श्रॄंगार संध्या निशा दोपहर.

7 comments:

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब!

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा.

पारुल "पुखराज" said...

SARAS...SUNDAR

Abhishek Ojha said...

sundar !

Manas Path said...

बहुत बढिया.

अमिताभ said...

very nice sir !!

कंचन सिंह चौहान said...

waah

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...