बन के दुल्हन हमारी गली में रही मुस्कुराती हुई चाँदनी एक दिन
चूमती थी अधर आ के मुस्कान की गुनगुनाती हुई रागिनी एक दिन
आज यादों की सुलगीं अगरबत्तियां, गंध में डूब तन मन नहाने लगा
चित्र अनुभूतियों के प्रथम पॄष्ठ का, सामने आ गया झिलमिलाने लगा
इक अबीरी छुअन, जैसे बिल्लौर की, प्यालियों में भरी छलछलाने लगी
बांसुरी की धुनों की पकड़ उंगलियां गीत लहरों का कोई सुनाने लगा
थी शिराओं में अँगड़ाई लेती हुई, कसमसाती हुई दामिनी एक दिन
चूमती थी अधर आके मुस्कान की गुनगुनाती हुई रागिनी एक दिन
फिर चमेली की परछाइयों में घुली भोर, निशिगंध को पी महकने लगी
स्वर्ण पत्रों से छनती हुईं रश्मियां, मन के रजताभ पट पर चमकने लगी
एक नटखट हवाओं का झोंका कोई, कान में आके कुछ कुछ सुनाने लगा
सांझ के पात्र में ओस भरती हुई, पूर्णिमा ज्यों सुधा बन टपकने लगी
कल्पना, बन क्षितिज पर संवरती रही खिलखिलाती हुई कामिनी एक दिन
बन के दुल्हन हमारी गली में रही मुस्कुराती हुई चाँदनी एक दिन
करवटें ले रहे आज वयसंधि के मोड़ पर जो उगे भाव अनुराग के
हीरकनियों के पंखों जड़े हैं सपन भावनाओं के रंगीन विश्वास के
एक चाँदी के वरकों सरीखी अगन लेती अँगड़ाई सुधियों की अँगनाई में
और बोने लगी बीज फिर से नये प्रीत की पुष्पबदनी मधुर आस के
अल्पना, द्वार की, डूब कर रंग में थी लजाती हुई शायिनी एक दिन
बन के दुल्हन हमारी गली में रही मुस्कुराती हुई चाँदनी एक दिन
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5 comments:
बन के दुल्हन हमारी गली में रही मुस्कुराती हुई चाँदनी एक दिन
चूमती थी अधर आ के मुस्कान की गुनगुनाती हुई रागिनी एक दिन
राकेश जी बहुत सुन्दर लगी आपकी ये रचना "चाँदनी जो खुद इतनी खुबसूरत होती है दुल्हन बनकर तो किस रूप में होगी सोचकर ही अति सुन्दरता का एहसास होता है" बहुत-बहुत बधाई।
Lambe vakya kavita me, dekh kar pahle to achanbha hua par apki siddh hast lekhani sab sambhal leki hai."Sanjh ke patra me os bharti huyi, purnima jyon sudha ban tapakne lagi", bahut hi achchi lagi ye pankti.
Baki ke maje ki baat bataun, anyatha na lijiyega, kora majak karne ki koshish hai. Apki kavita "51 nice indian names for baby dolls", ki tarah bhi kaam kar sakti hai.chandani, ragini,, damini, chameli, rashmi, purnima, sudha, kalpana, kamini, bhavnaa, sudhi, priti, pushpvadanaa, madhu, alpana, shaayini........Kya karun ronk nahi paya ye bhi likh dene se.
ऐसी ही रचनाएँ हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाती हैं ।
बहुत ही अच्छी रचना ।
वाह उपस्थितजी ! यह माना आप गद्य में कविता करते
पांडेअजी उद्गार आपके, फिर लिखने को प्रेरित करते
और भावनाजी कैसे आभार प्रकट मैं करूँ आपका
हर इक बार रहा हूँ निष्फल, मैं लिखने की कोशिश करते
अति सुंदर, राकेश भाई. वाकई, उपस्थित जी सही फरमा रहे हैं, इतनी लंबी पंक्तियों को साधना-यह आपके ही बस में है.
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