यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम

 



सजाई है तुमने ग़ज़ल की ये महफ़िल 
यहां सर्दियों का गुलाबी है मौसम 
यहां ताकते रह गए खिड़कियों से
 कहाँ सर्दिया का गुलाबी है मौसम ?
नहीं छोड़ती स्याही चौखट कलम की 
नहीं भाव फिसलें अधर की गली में 
कहें कैसे गज़लें ? तुम्ही अब बताओ 
घुले शब्द सब, चाय की केतली में 
सुबह तीन प्याली से की थी शुरू फिर 
दुपहरी तलक काफियों के ही मग  हैं 
अभी शाम को घर पे पहुंचेंगे तब तक 
तबीयत रहेगी उलझ बेकली में 
यहां तो हवाएं हो चालीस मीली
मचाती है दिन में ओ  रातों में उधम 
कहाँ है बताओ गुलाबी वो मौसम 
चुभे तीर बन कर ये बर्फीले झोंके 
गए छुट्टियों पर हैं सूरज के घोड़े 
नहीं धूप उठती  सुबह सात दस तक 
इधर चार बजते , समेटें निगोड़े 
बरफ से भी ठंडी हैं बाहर फ़िजये
 निकल  करके देखें वो हिम्मत नहीं है
जुटाए जो साधन  लड़े सर्दियों से 
सभी के  सभी हैं लगें हमको थोड़े 
गया पारा तलघर समाधि लगाने
तो लौटेगा बन करके बासंत-ए-आज़म
नहीं है गुलाबी ज़रा भी ये मौसम
ठिठुर कँपकँपाती हुई उंगलियां अबन कागज़ ही छूती, न छूती कलम हीयही हाल कल था, यही आज भी हैहै संभव रहेगा यही हारल कल भी 
गये दिन सभी गांव में कंबलों केछुपीं रात जाकर लिहाफ़ों के कोटरखड़ीं कोट कोहरे का पहने दिशायेंहँसे धुंध, बाहों में नभ को समोती 
अभी तो शुरू भी नहीं हो सका है 
अभी तीन हफ्ते में छेड़ेगा सरगम 
तो नीला, सफेदी लिए होगा मौसम 

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