अ से अगर अमावस लिखते

 




कलम तुम्हारे हाथों में है, जो भी लिखो संतुलित लिखना 
अ  से अगर अमावस लिखते हो तो फिर अमृत भी लिखना 

आंसू, आहें असंतोष की लिखते आये हो गाथाये 
भूख गरीबी बेकारी की घिसी पिटी  बस वही कहानी 
लिखो, किरण ने  अभिलाषा की जिन्हें सुनहरा कर रखा है 
आशाओं के इंद्रधनुष से भीगी हुई आँख का पानी 

निष्ठाओं में संकल्पों में लिपटे विश्वासों को लिखना 
अ  से लिखते अगर अमावस, तो फिर अमृत  भी तो लिखना 

बहुत सरल होता है आक्षेपित उँगली का ऊपर उठना 
लेकिन बाक़ी की तो चिन्हित करती आइ सदा तुम्हें ही
अपने अधिकारो की बातों को उछालने से कुछ पहले
सोचो ज़रा निभाना कितना और कहाँ दायित्व तुम्हें भी 

अपने संघर्षों को लिखते हो तो योगदान भी लिखना 
अ से अगर अमावस लिखनी है तो फिर अमृत भी लिखना 

डूबा है आकाश कहासे में तो किरण भोर की भी है
तम के भ्रम सब एक निमिष में रश्मि रश्मि से कट जाते हैं 
जलते हुए दिए शरदीली अंधियारी गहरी मानस को
नहीं भूलना अंगड़ाई ले कर दीवली कर जाते हैं 

जब अपनी उपलब्धि लिखो तो किसका कितना ऋण भी लिखना
अ से जब जब लिखो अमावस तब तब तुम अमृत भी लिखना 




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