होली -ब्रज की

होली की सज रही उमंगें 
जाड़ा  भाग गया 

सिलबट्टे पर भांग घुट रही 
मथुरा-जमाना तीरे 
चढ़े खुमारी की सीढ़ी   पर 
पंडा धीरे धीरे
 जिजमानी में चार किलो 
वो रबड़ी फांक गया 

नीली पीली हरी गुलाबी
हैं गुलाल की ढेरी
इंद्रधनुष सी छटा दिखाती
है अबीर चन्देरी
कोई टेसू के फूलों से
भर कर नाँद गया

चढ़ा रही है मात झाड़ पर
उपला-गूलरी माला
अभिलाषा ले बांध रही है
कते सूत का धागा
आलावों पर पुष्प हार ला
कोई टाँक गया 

नंद गाँव से बरसाने तक
उड़े रंग के बादल
ठंडाई से भरी हुई है
हर रसिये की छागल
मौसम भी अलमस्त धुनों में
गाता फाग गया 

राकेश खंडेलवाल 
९ मार्च  २०२० 

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