तोतपंखी


तोतपंखी किरणों में अब लिपटी उषा की अंगड़ाई
चला विदा ले शिशिर, बसंती चादर ओढ़ रही अंग़नाई

घर के पिछवाड़े की बगिया करती फूलों की अगवानी
गौरीयआ ने आकर छेड़ी ऋतुओ की इक नई कहानी 
रंग बदल कर हुआ आसमानी फिर से धुंधलाया अम्बर 
फिर से सजी वृक्ष के नीच चौपालों की शाम सुहानी 

दरवेशों की पदचापों की ध्वनि फिर से गूंजी गलियों में 
फिर भोपा के अलगोजे पर आकर नव तानें लहराई 

पेड़ों की शाखा ने फेंकाओढ़ा हुआ धुँध का कम्बल
हुई कसमसाते टन मन में सिहरन की धीमी सी हलचल
हौले से पाखी ने अपने कोटर का दरवाज़ा खोला
नरम डूब की ड्योढ़ी पर आ लगी उचकने नन्ही कोंपल 

जाते हुये माघ के रथ को देख दिशायें हुई उमंगित
चली हवाओं की चूनर से छिटकी हुई मस्त फगुनाई

दिन ने अपने पाँव पसारे निशि  का आँचल लगा सिमटने
तलघर में बैठा पारद भी रह रह लगा सीढ़ियाँ चढ़ने
तोतपंखी किरणों में रंग  गए खेत खलिहान समूचे 
गदराई  सरसों के आतुर हाथ लग गए पीले होने 

चंगों  की थापों पर गूंजे ब्रज प्रदेश में रसिया के सुर 
यमुना की लहरों ने तट पर आ अपनी पायल 
राकेश खंडेलवाल 

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