गीतों से अनबन थी मेरी
कविता से अनुबंध अँहीं था
इसीलिये जो लिख पाया मैं
उसमें कोई छंद नहीं था
लय की गति से अनजाना मैं
कैसे लिखता कोई कहानी
क्रमश:ता की बहती धारा
लेशमात्र सुधि ने न जानी
रहे कथानक सभी अधूरे
शब्द नहीं क्रम से लग पाये
सरगम से थे रहे अपरिचित
अधरों ने जो स्वर दुहराये
मन में उठे विचारों में से
कोई भी स्वच्छंद नहीं था
इसीलिये जो लिख पाया मैं
उसमें कोई छंद नहीं था
ग़ज़लों में बहरों की बंदीश
औ' रदीफ़ से जुड़े काफिये
नहीं समझ ये तनिक आ सका
रुक कर कब मुड़ गए काफिये
नहीं संतुलन होने पाया
मिसरा उला और सानी में
तितर बितर अहसास समूचे
उलझ रह गए मनमानी में
बन न सका मधुपर्क बूँद भर
क्योंकि पास मकरंद नहीं था
लिख पाई जो कलम आज तक
उसमें कोई छंद नहीं था
नवगीतों ने किया न आकर
कभी लेखनी का आलिंगन
दोहों और सवैय्यों से भी
रहा अनछुआ मेरा आँगन
कविता को समझूँ इस में ही
दिवस निशा हो जाते हैं गुम
झरते जाते कैलेन्डर से
यूँ ही दिनमानों के विद्रुम
जोड़ तोड़ में, तुकबन्दी में
किंचित भी आनन्द नहीं था
इसीलिये मेरे लिखने में
जो कुछ था वह छन्द नहीं था
1 comment:
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 14/01/2019 की बुलेटिन, " अंग्रेजी के "C" से हुआ सिरदर्द - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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