तुम ही

तुम ही क्रिया तुम्ही संज्ञा हो,
सर्वनाम भी मीत तुम्ही
तुम ही भाषा तुम्ही व्याकरण
साज तुम्ही संगोत तुम्ही

खड़िया पट्टी, बुदकी तख्ती
आ ओलम सारे अक्षर
कंठ कंठ से मुखर गूंजता
शब्द शब्द व्यंजन औ स्वर 
बारहखाडियो की संरचना
का जो ध्येय तुम्ही तो हो
अधरों की कंपन में उतरा
जो वह तुम ही हो सत्वर+

चंद्रबिंदु तुम, तुम विराम हो 
शब्द संधि की रीत  तुम्हीं 

गुणा भाग के समीकरण का 
हासिल जो  परिणाम तुम्हीं
जोडा और घटा कर देखा 
शेष रहा जो नाम तुम्हीं 
बीजगणित के अंकगणित के
सूत्र तुम्हीं से प्रतिपादित
रेखाओं में बँधे सितारे
ग्रह तुम ही नक्षत्र तुम्हीं 

तुम ही इक कल आने वाला
और गया जो बीत तुम्हीं 

वर्णन सिर्फ तुम्हारा ही है
युग युग के इतिहासों में
तुम ही रहे साथ में प्रतिपल
मरुथल में, मधुमासों में
चेतन और अचेतन का हो
अवचेतन का केंद्र तुम्ही
 बंद पलक का तम हो तुम ही
मुदित तुम्ही उजियासों में

तुम ही मैं हो, मैं भी तुम हो
जीवन की हो प्रीत तुम्ही
तुम ही क्रिया, विशेषण तुम ही
सर्वनाम भी मीत तुम्ही




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