तमस राह में
दिया जला कर
ढूंढ रहै तकदीर
जिन हाथो में
शेष न कोई
बाकी रही लकीर
कबिरा की
विकलांग लुकाठी
हाथों में थामें
सांस भिखारिन उस
द्वारे पर
आ भिक्षा मांगे
जिस द्वारे पर
पंक्ति बना कर
सत्तर खड़े फ़कीर
बिना सुई की
घड़ियां पहने
इठलाती दीवार
टिका हुआ है
कैलेंडर सा
परसों का अखबार
खबर छपी कल
लुटने वाली
धड़कन की जागीर
रही रिक्त
सन्देश बिना
इक काँधे की झोली
सूनी छत पर
कोई चिरैय्या
आकर न बोली
लक्ष्मण रेखा
खींच खड़ा खुद
जमनाजी का तीर
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