मुरझाये सम्बन्धों को मैं फ़िर जीवन्त बना तो दूँगा
पहले विश्वासों की धरती को थोड़ा हमवार बनाओ
सम्क्बन्धों के बीज सींचती, जब अपनत्व भरी इक गागर
सहज अंकुरित हो बन जाते वटवृक्षों की गहरी छाया
लेकिन उगती हुई उपेक्षा उनको कीकर कर देती है
शेष नहीं रह्ता तब उनके पास एक् चुटकी भर साया
कर तो दूँ संचार ज़िन्दगी का मैं इस सूखे पल्लव में
पहले जीवन की क्यारी में कोमलता तो तनिक उगाओ
याचक बनी आंजुरी उठती नहीं कभी मुट्ठी बन ऊपर
ज्कड़ी हुई अपेक्षाओं से, बन्दी बन रहती घेरे में
समय पृष्ठ की सीमाओं से बढ़ता हुआ अपरिचय उनका
रह जाता है एक शून्य बन, पुता हुआ उनके चेहरे में
खोई हुई अस्मिताओं को मैं शीर्षस्थ बना तो दूँगा
पहले तुम अपने अंत:स में संकल्पों के दीप जलाओ
बहती इस जीवन नदिया के इक तट पर तुम हो इक पर मैं
और हमें जो जोड़ रहा वह पुल है टिका भावनाओं पर
निस्पृहता के धागे उसके आधारों को सुदृढ़ करते
औ विध्वंस टिका है उसका चाहत भरी कामनाओं पर
मैं इस पुल को सबन्धों का शिलालेख कर जड़ तो दूंगा
पहले तुम अभिलाषाओं पर अपनी पूर्ण विराम लगाओ
1 comment:
खोई हुई अस्मिताओं को मैं शीर्षस्थ बना तो दूँगा
पहले तुम अपने अंत:स में संकल्पों के दीप जलाओ
अद्भुत!!
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