सूखे कपडे-ज़िंदगी

कल संध्या को 
सूख गए कपडे निकालते 
ड्रायर में से 
जिंममें कुछ थोड़े से नम थे 
और  कहीं पर बाकी थी कुछ 
बासंती सी छुअन गंध की 
उन्हें तहांते , लगा सोचने 
क्या जीवन की गठरी में से बिखर गए जो 
मैले कपडे  
फिर से धुलकर  
नई  गंध ले 
नया  कलेवर  कोई ओढ़े 
सज पाएं जो 
बची उम्र की अलमारी में 
तब संभव है 
हुए नहीं जो पूर्ण अभी तक 
उन सपनों को 
पुनः  सजा लें 

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