चिर तृप्ति अमरता पूर्ण प्रहर

ओ चांद गगन के तनिक ठहर
है दूर अभी तो बहुत सहर
पाना है शेष अभी मुझको
चिर तृप्ति अमरता पूर्ण प्रहर

सुन अभी अभी तो आई है
यह किरण दूधिया गांव मेरे
हाँ अभी अभी तो साँसों में
ले सुरभि गुलाब के फूल तिरे
छलकी न दृष्टि घूंघट से अभी
थरथराये नहीं स्पर्श पाकर अधर
है दूर अभी हां दूर अभी
चिर तृप्ति अमरता पूर्ण प्रहर

हाँ आतुर हुई उंगलिया कुछ
वीणा में आ जाए कसाव
धड़कन को और धड़कना है
रागों को मिल जाये बहाव
है शेष अभी इन राहों पर
जो शुरू हुआ इक बार सफर 
सुन चंदा दूर अभी भी है
चिर तृप्ति अमरता पूर्ण प्रहर

मिलने है एक बिंदु पर आ
यह सकल धरा विस्तृत वितान
कर बन्द पलक, रख नयन खुले
एक नये जगत को हो प्रयाण
कल्पित हर एक कल्पना की
सीमा से आगे शून्य विवर
सुन चांद, वहीं पर संभव है
चिर तृप्ति अमरता पूर्ण प्रहर

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