जड़ दिया अतुकांत को
जब
छंद में
मैंने
तब मधूर
इ
क गीत
को
जीवन
दिया
मैंने
मैं प्रणय की वीथियों में भावना बन कर बहा
हर
सुलगते
ज्वार को अनुभूत मैं करत रहा
रूप तब इक अन्तरे
को दे दिया
मैंने
कर
दिए
पर्याय
के
पर्याय
अन्वेषित
शांत मन के भाव को कर खूब उद्देलित
शब्द को सरगम पिरोकर रख
दिया मैंने
था तरंगित अश्रुओं की धार में खोकर
पीर के सज्जल क्षणों में अर्थ कुछ बोकर
दर्द का
श्रृंगार
नूतन कर दिया.मैने
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