जीवन की विपदाएं ढूंढें

अच्छे है नवगीत गीत सब्
किन्तु आज मन कहता है सुन
नव विषयो को नए शब्द दे
और नई उपमाएं ढूंढें

दिशा पीर घन क्षितिज वेदना
पत्र लिए बिन चला डाकिया
खाली लिए पृष्ठ जीवन के
अवलंबों से परे हाशिया
कजरे सुरमे से आगे जाकर
दीपित संध्याये ढूंढें

विरह मिलन हो राजनीति
या भूख गगरीबी खोटे सिक
भ्रष्टाचार अभावो के पल
अफसरशाही चोर उचक्के
इनसे परे उपेक्षित हैं जो
जीवन की विपदाएं ढूंढें

मावस पूनम के आगे भी
जलती हैं लिख दे वे राते
और  धरा के मौसम वाले
विद्रोहों की भी बातें
सीमा की परिधि के बाहर
है कितनी सीमाएं ढूंढें

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही सुन्दर कविता..

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