ओस की बूँद आ पंखुरी से मिले

यूँ लगा जैसे कल की परीक्षाओं के
प्रश्नपत्रों के उत्तर सभी मिल गये
बीज बोया नहीं एक भी, साध की
क्यारियों में सुमन आप ही खिल गये
साधना के बिना कोई वर मिल गया
प्रार्थना के बिना पूर्ण पूजा हुई
रात की श्यामला चूनरी का सिरा
जड़ सितारे स्वयं आज झिलमिल हुआ
 
आप ऐसे मिले ज्यों मिले ओस की
बूँद आकर किसी पंखुरी से गले
आप ऐसे मिले पूर्व की गोख में
रश्मियाँ ज्यों क्षितिज से मिली हों गले
 
कल्पना ने कभी कल्पना की नहीं
चित्र से आप जीवन्त हो जायेंगे
शब्द जितने बिखर रह गये पृष्ठ पर
आप ही गीत के छन्द हो जायेंगे
नैन की वीथियों में भटकते हुए
दृश्य बन जायेंगे स्वप्न की बाँसुरी
साध यायावरी के किसी लक्ष्य से
जुड़ गई एक अनुबंध की पाँखुरी 
 
दृष्टि के पाटलों पर घिरे जो हुए
वे कुहासे सभी एक पल में ढले
आप ऐसे मिले ज्यों मिले ओस की
बूँद आकर किसी पंखुरी से गले
 
द्वार देवालयों के खुले आप ही
एक प्रतिमा स्वयं अवतरित हो गई
स्वप्न ने स्वप्न में जो संजोई कभी
एक घटना सुखद वह घटित हो गई
बिन तपस्या उतर आई भागीरथी
बिन अपेक्षा दिया सिन्धु ने रत्न ला
शतगुणित सत्य बन सामने आ गया
कल्पना का तनिक जोकि अनुमान था
 
यूं लगा पूर्व के संचयित पुण्य सब 
सामने आ गए एक पल में फले 
आप ऐसे मिले ज्यों मिले ओस की
बूँद आकर किसी पंखुरी से गले
 
लोह का एक टुकड़ा परस पारसी
पा अनायास जैसे कि कंचन हुआ
एक सूखा हुआ तॄण पड़ा भूमि पर 
गंध में डूब कर जैसे चन्दन हुआ
मौसमों की हुई चूनरी फागुनी
दोपहर में गगन दीप जलने लगे
दक्षिणांगी हुए नभ के नक्षत्र सब 
साँझ की चौघड़ी में संवरने लहे 

हर लहर हो गई यूं तरंगित तनिक 
जैसे डोली किसी नवदुल्हन की चले
आप ऐसे मिले ज्यों मिले ओस की
बूँद आकर किसी पंखुरी से गले 

No comments:

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...