लौट जाओ प्यार के संसार से ओ वावरे मन
इस नगर में प्रीत के मानी बदलने लग गए हैं
टूट कर बिखरी हुई जन्मांतरी सम्बन्ध डोरी
हो चुकीं अनुबंध की कीमत लिखे कुछ कागज़ों सी
साक्ष्य में जो पीपलों कीथीं कभी सौगन्ध सँवरी
हो गई हैं पाखियों के टूट कर बिखरे परों सी
इस नगर की वीथियों में भीड़ बस क्रेताओं की है से
अर्थ वाले शब्द के अब भाव लगने लग गए हैं.
जो विरासत थी हमारी प्रीत बाजीराव वाली
जो लवंगी ने लिखी थी स्वर्ण वाले अक्षरों से
प्रीत जिसने थे रचे इतिहास के पन्ने हजारों
बीन्धते मीनाक्षी को बिम्ब के इंगित शरों
इस नगर में गल्प वाले बन गये हैं वे कथानक
चिन्दियाँ होकर हवा के साथ उड़ने लग गये है
लौट जाओ प्यार के संसार से कवि तुम धरा पर
अब न विद्यापति न कोई जायसी को पूछता है
गीत गोविन्दम हुये निष्कासिता इसकी गली से
कोई राधा कृष्ण की गाथाएं सुन ना झूमता है
इस नगर में लेखनी लिख पाएगी ना उर्वशी को
कैनवास पर चित्र खजुराही उभरने लग गए हैं
1 comment:
Bahut sunder!
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