नहीं कुछ फ़र्क है चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम हो
या चाहे हो वो ईसाई सभी का आचरण ऐसा
किताबों में लिखी बातों के बदले अर्थ सबने ही
दिए बस नाम मरियम के, उमा के फातिमा के ही
सजा तस्वीर में केवल बता कर त्याग की मूरत
तेरा शोषण निरंतर कर किया है बस तुझे छलनी
नहीं कुछ फर्क है केवल जमाने को दिखावा है
जो औरों के लिए है बस, है खुद को आवरण कैसा ?
तुझे सम्मान दें, पूजें जनन की शक्ति फिर तेरी
जनक तू ईश की भी है , करे हम भक्ति फिर तेरी
सिखाया ये गया था आदमी को बालपन में ही
मगर सब भूल कर के कर रहे आसक्ति बस तेरी
नहीं कुछ फर्क है इस स्वार्थ वाली मानसिकता में
-अंधेरों में, उजाले का मिले अंत:करण कैसा
चलो लौटाएं रथ को काल के हम आज फिर वापस
करें" नार्यस्य पूज्यंते " प्रतिष्ठित सीख वेदों की
रमेंगे देवता आकर उतर कर स्वर्ग से भू पर
भरेगी रोशनी फिर ज़िंदगी में नव-सवेरों की.
न निर्वास , न निर्वसना, न शोषण न प्रताड़ण हो
रचें भाषाएँ हम ऐसी, रचें हम व्याकरण ऐसा
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