जीवन पथ पर दुर्गमाताएं चाहे जितने फ़न फैलाएं
साँसों के आँगन में पलता संकल्पित विश्वास बहुत है
अवरोधों के बाद सफलता, फूल और कांटे राहों के
सिक्का एक सिर्फ दो पहलू यायावर ने जान लिया है
तब से हुये अग्रसर उसके पग अविरल उत्तर दिशि को ही
पीछे मुड़ कर नहीं देखना मंज़िल ने आव्हान किया है
हो गंतव्य दूर कितना ही घिरा कुहासों के आंचल में
एक तुम्हारी दृष्टि प्रदर्शक , कदमों को विश्वास बहुत है
धूप छाँह हो, सुख या दुःख हो, निशा दिवस सब संग संग चलते
साँझ नीड पाथेय भोर में, जीवन के अविरल गतिक्रम हैं
उद्गम से ले विलय बिंदु की यात्रा कब निर्बाध रही है
किन्तु बाँध हर एक तोड़ता निश्चयमय गति का उद्यम हैं
गहन निशा के अंधियारे आ कितने भी छा जाएँ क्षितिज पर
प्राची के आँगन में उगता सूरज का आभास बहुत है
अँगनाई में बिखरे आकर गौरैय्या के चितकबरे पर
अम्बर का विस्तार नापते फैले हुए गरुड़ के डैने
जिस अदृश्य रेखा से जुड़ते, परिवर्तित होती उद्यम से
ध्वंस सहज सज जाते होकर नूतन निर्माणों के सपने
आँखों की कोरो से चाहे जितने स्वप्न पिघल बह जाएँ
नई कल्पनायें सजने को केवल इक मधुमास बहुत है
अंतरमन की घाटी से जो उमड़ उमड़ कर बहती धारा
उनके खारेपन में आओ बोयें मिल कर नई सुधायें
फ़ैली हुई हथेली में भर आशाओं के मूर्तिशिल्प को
क्रंदन की क्यारी में फिर से मुस्कानों के फूल खिलाएं
कलम तेरी कवि ! करे सर्जना नव प्रयास नव उत्साहों की
जीवन के आँगन में यूं ही कुंठा और संत्रास बहुत है
2 comments:
संकल्पित विश्वास यदि साथ है, जीवन भी तरल हो जाता है। सुन्दर पंक्तियाँ
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
शुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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