हों दिवस आपके स्वर्ण पत्रों मढ़े और रजनी को रंगती रहे चाँदनी
आपके पंथ को सींचती नित रहे करते छिडकाव आकर घटा सावनी
भोर सारंगियों की धुनों में सजे,सांझ तुलसी के चौरे जला दीप हो
आपके द्वार पर सरगमों को लिए हर घड़ी मुस्कुराती रहे रागिनी
टूट कर आस के फूल पिछले बरस,जो बिखर रह गए फिर से जीवंत हों
आस्था फिर नई दुल्हनों सी सजे,आपके स्वप्न फिर अनलिखे ग्रन्थ हों
ताकते उँगलियों का इशारा रहें आपकी, नभ के नक्षत्र तारे सभी
हर घड़ी आके चूमे सुयश आपको,कीर्ति से आपकी लोक जयवंत हों
3 comments:
आपको भी ऐसी ही सुखद शुभकामनायें।
जिन्दाबाद...नव वर्ष शुभ हो! मंगलकामनाएँ....
Sadar pranam! Bahut sunder likha hai!
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