एक ही साध मन में सँजोये

छन्द के फूल अर्पित किये जा रहा
तेरे चरणों में, मैं नित्य माँ शारदे
एक ही साध मन में सँजोये हुए
मुझको निर्बाध तू अपना अनुराग दे
भावना के उमड़ते हुए वेग को
कर नियंत्रित,दिशायें नई सौंप दे
मेरे अधरों को सरगम का आशीष दे
बीन के तार तू अपने झंकार के
तेरे शतदल कमल से छिटकती हुई
ज्ञान की ज्योति पथ को सुदीपित करे
तेरे वाहन के पर से तरंगित हुईं
थिरकनें, कल्पनायें असीमित करे
माल के मोतियों से अनुस्युत रहें
शब्द जो लेखनी के सिरे से झरें
अक्षरों को नये भाव के प्राण दे
तेरा आशीष उनको सँजीवित करे
तेरे स्नेहिल परस से निखरते हुए
शब्द घुँघरू बने झनझनाते रहें
आरुणी कर परस प्राप्त करते हुए
छंद तारक बने झिलमिलाते रहें
तेरी ममता की उमड़ी हुई बदलियाँ
शीश पर छत्र बन कर बरसती रहें
कामना है यही साँस की डोर से
हों बँधे गीत बस खिलखिलाते रहें.

4 comments:

Arun sathi said...

सुन्दर, भावपूर्ण

प्रवीण पाण्डेय said...

गीत यूँ ही खिलखिलाते ही रहेंगे।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर गीत

Udan Tashtari said...

सुन्दर गीत

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