जब मेंहदी से रची हथेली

तुमने अपने दोपट्टे को आज जरा सा लहराया तो
एक बदरिया अपने घर से घड़े सुरभि के भर कर चल दी

अनियंत्रित हो घूम रहे थे जब मधुवन में पांव तुम्हारे
कलियों के कानों में बन कर गीत ढला भंवरों का गुंजन
सरगम की तंत्री को झंकृत करते करते लगी नाचने
दूब, तुम्हारे कोमल पग की महावर का पाकर के चुम्बन

लटका ही रह गया शाख पर चंचल एक हवा का झोंका
भूल गया वह तुम्हें देखकर, अपने घर जाने की जल्दी

शांत झील के दर्पन में था उभरा आकर बिम्ब तुम्हारा
तो लहरों ने सिहर सिहर कर छेड़ी मधुरिम नीर तरंगें
हुए रंगमय और अधिक कुछ तितली के पंखों के बूटे
सारंगी    लग   गईं  बजाने    पोर   पोर   में   नई   उमंगें

और हुआ रक्ताभ, सांझ की दुल्हन का घुँघटाई चेहरा
जैसे लाली ले कपोल से अपने, तुमने उस पर मल दी

चिकुरों से काजल ले नभ ने अपने नयन किये कजरारे
काया की कोमलता लेकर खिले फूल हँसते सैमल के
अभिलाषाओं की इक गठरी अनायास खुल कर बिखराई
भाव पिरोने लगे ह्रदय में कुछ सपने फिर स्वर्ण कमल के.

और लगे अँजने आँखों में आ आ कर वे निमिष रजतमय
जब मेंहदी से रची हथेली पर चढ़ जाया करती हल्दी.

4 comments:

seema gupta said...

चिकुरों से काजल ले नभ ने अपने नयन किये कजरारे
काया की कोमलता लेकर खिले फूल हँसते सैमल के
अभिलाषाओं की इक गठरी अनायास खुल कर बिखराई
भाव पिरोने लगे ह्रदय में कुछ सपने फिर स्वर्ण कमल के.

" बेहद ही खुबसूरत और मधुर गीत.."

regards

प्रवीण पाण्डेय said...

इस प्रवाह में कई बार बहा और अब डुबकी लगा के आया हूँ गहराई में। बहुत ही सुन्दर अनुभूति।

विनोद कुमार पांडेय said...

थोड़ी सी अलग इस बार की रचना पर बात वहीं ...भावपूर्ण ....एक और बड़ी ख़ासियत होती है आपकी लेखनी का कि इसे गुनगुना कर पढ़े तो मज़ा दुगुना हो जाता है..छ्न्द में बँधी हुई एक सुंदर गीत....मुझे बहुत बढ़िया लगी आपकी आज की यह प्रस्तुति....गीत के लिए विशेष धन्यवाद..प्रणाम स्वीकारें

सुनील गज्जाणी said...

rakesh jee
pranam !
sunder geet hai aap ke .
achche lage ,
badhai
sadhuwd
saadar !

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