दो घूँट चाँदनी पी लें

तारों भरे कटोरे से दो घूँट चाँदनी पी लें
पिरो शांति के पल साँसों में, जरा चैन से जी लें


संध्या के आँचल पर टांकें नई कथा चौपालें
मल्हारों की चूनर ओढ़े गायें नीम की डालें
नव दुल्हन की तरह लजाती खेतों की बासन्ती
सोने के आभूषण पहने हुए धान की बालें


बिम्ब यही दिखलायें केवल नयनों वाली झीलें
तारों भरे कटोरे में से जरा चाँदनी पी लें


हवा गुनगुनी,धूप सुनहरी, बरगद की परछाईं
एक एक कर सहसा सब ही यादों में तिर आईं
पगडंडी पर गीत गुनगुनाती कोई पनिहारिन
घूँघट में से झाँका करती चेहरों की अरुणाइ


कहीं ले गईं इन्हें उड़ा कर गये समय की चीलें
तारों भरे कटोरे से कुछ आज चाँदनी पी ले

अम्मा के हाथों की रोटी,ताईजी की बड़ियाँ
नानीजी की टूटी ऐनक दादाजी की छड़ियाँ
जीजी की साड़ी के बूटे ,सलमा पोत सितारे
मुन्नी के सुर की सरगम में गूंजी बाराखड़ियाँ

सुधियों में फिर आज जल उठीं बन कर के कंदीलें
तारों भरे कटोरे से दो घूँट चाँदनी पी लें

7 comments:

Udan Tashtari said...

अम्मा के हाथों की रोटी,ताईजी की बड़ियाँ
नानीजी की टूटी ऐनक दादाजी की छड़ियाँ
जीजी की साड़ी के बूटे ,सलमा पोत सितारे
मुन्नी के सुर की सरगम में गूंजी बाराखादियाँ



-अद्बुत बिम्ब...भाई जी..लाजबाब कर देते हैं आप!!

प्रवीण पाण्डेय said...

उत्कृष्ट शब्दगढ़ी।

Archana Chaoji said...

गाने में बहुत अच्छा लगा ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर गीत ..यादों में डूबते उतरते से ...

विनोद कुमार पांडेय said...

अम्मा के हाथों की रोटी,ताईजी की बड़ियाँ
नानीजी की टूटी ऐनक दादाजी की छड़ियाँ
जीजी की साड़ी के बूटे ,सलमा पोत सितारे
मुन्नी के सुर की सरगम में गूंजी बाराखादियाँ

बेजोड़ शब्द संरचना, आज कल तो मैने इन्ही शब्द संयोजन में खो जाता हूँ...कितने सुंदर शब्द और उससे निकलती हुए बेहतरीन भाव रच पाना आसान नही.....एक उत्कृष्ट रचना के लिए हार्दिक बधाई.....प्रणाम राकेश जी

Harish said...

such a very nice.
flower delivery

निठल्ला said...

अम्मा के हाथों की रोटी,ताईजी की बड़ियाँ
नानीजी की टूटी ऐनक दादाजी की छड़ियाँ

राकेश जी, ये दो लाईनें अपने बहुत करीब लगती हैं, बहुत खूब

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