सोचता मै रहा पत्र तुमको लिखूँ
और लिख दूँ कि तुम हो बसे सांस में
हो चकोरी जिसे मन सजाता रहा
तुम बसे पूनमी उस मधुर आस में
गंध ने तितलियों के परों पर लिखी
बात मन की मेरे चित्र में खींचकर
एक बादल कली को बता कर गया
क्यारियों की गली में उसे सींच कर
दूब पर ओस की बून्द से लिख लिया
रश्मियों ने जिसे मुस्कुराते हुए
बात वह, मलयजी इक झकोरा हुआ
प्रीत के रंग में गुनगुनाते हुए
पत्र में फिर लिखूँ बात मैं इक वही
जो दिवस लिख रहा नित्य आकाश में
ये लिखूँ मैं, तुम्हारी है जादूगरी
जो मेरे तन पे, मन पे है छायी हुये
शब्द होठों पे मेरे संवरते वही
गीत में तुमने जो गुनगुनाये हुये
चित्र बन तुम दिवस साथ मेरे रहे
स्वप्न बन कर रहे तुम मेरी नींद के
नैन में तुम बसे चन्द्रमा की तरह
चौदहवीं रात के, दूज के, ईद के
सोचता हूँ लिखूँ दूर जो तुम वही
और तुम ही मेरे आस में पास में
जानता तुम कहोगे विदित है तुम्हें
एक तुम हो मेरी मंगला आरती
एक तुम भावनाओं की भागीरथी
हो प्रवाहित चरण जिसके प्रक्षालती
और तुम मेरे विश्वास का नीर हो
है भरी जिससे मेरी सदा आंजुरी
और तुम ही वही रंग की पूर्णता
जिससे है अल्पना ज़िन्दगी की पुरी
एक तुम हो मेरी बांसुरी की धुनें
और हो नॄत्य तुम मेरे हर रास में
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4 comments:
:)
बहुत ही मीठा गीत !
*****
"एक बादल कली...क्यारियों की गली"
"ये लिखूँ मैं, तुम्हारी है जादूगरी .."
"नैन में ...चौदहवीं रात के, दूज के, ईद के"--कितनी सम्पूर्णता है इस बिम्ब में !
"सोचता हूँ लिखूँ दूर जो तुम वही,और तुम ही मेरे आस में पास में"---"आस में पास में"---ये बहुत ही सुन्दर प्रयोग लगा. आस-पास के साथ साथ आस के पास होने की अनुभूति:)
"जानता तुम कहोगे विदित है तुम्हें..."
वाह !!! अप्रतिम प्रेमगीत !!!
बहुत सुंदर.... वाह..
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