परे हो खिड़कियों के झांकती थी शाख से बदली
लिये थी कामना रंगीन चित्रों की सजा पगली
उमंगों की हिलोरों में उठाती मदभरी लहरें
उतरती दूब पर पाने परस थी पांव का मचली
सजे ही रह गये अगवानियों के थाल,आरति कर न पाये
तुम न आये
सिमट कर रह गया मॄदुप्रीत का अरुणाभ आमंत्रण
निशा के अश्रुओं ने सींच कर महका दिया चन्दन
कसकती रह गईं भुजपाश की सूनी पड़ी साधें
शिथिल ही रह गया द्रुत हो न पाया ह्रदय का स्पंदन
खिड़कियों के पट खुले ही रह गये, फिर भिड़ न पाये
तुम न आये
भिखारिन सेज थी ले आस का रीता पड़ा प्याला
हवायें आतुरा थी चूम पायें गंध की माला
रही निस्तब्धता व्याकुल भरे वह माँग रुनझुन से
निखर कर चान्दनी में रूप की मदमाये मधुशाला
सांझे से सोये पखेरु जग गये फिर चहचहाये
तुम न आये
प्रतीक्षा के दिये का तेल सारा चुक गया जल कर
शमा का मोम विरह की अगन में बह गया गलकर
उबासी ले सितारों ने पलक भी मूँद लीं अपनी
उषा को साथ ले आने लगा रथ सूर्य का चलकर
नैन थे दहलीज पर पलकें बना पांखुर बिछाये
तुम न आये
6 comments:
इतनी उम्दा और बेहतरीन रचना पर कमेंट काहे बंद रखे थे कुछ देर. अच्छा किया जो आपने चालू कर दिया वरना तो हम तड़प कर रह गये होते. आभार कहूँ क्या..हा हा!!
:(
भिखारिन सेज थी ले आस का रीता पड़ा प्याला
हवायें आतुरा थी चूम पायें गंध की माला
रही निस्तब्धता व्याकुल भरे वह माँग रुनझुन से
निखर कर चान्दनी में रूप की मदमाये मधुशाला
सांझे से सोये पखेरु जग गये फिर चहचहाये
तुम न आये
उफ़ राकेश जी क्या लिखते हैं आप...अद्भुत...वाह...वा...मन जो अनुभव कर रहा है उसे शब्द नहीं मिल रहे...
नीरज
ek behtareen sashakt rachna badhaai
Adbhut !! Adwiteey !!
Shabd kahan jo prashansha kar sakun....
"परे हो खिड़कियों के झांकती थी शाख से बदली
सजे ही रह गये अगवानियों के थाल,आरति कर न पाये
सिमट कर रह गया मॄदुप्रीत का अरुणाभ आमंत्रण
निशा के अश्रुओं ने सींच कर महका दिया चन्दन
कसकती रह गईं भुजपाश की सूनी पड़ी साधें
शिथिल ही रह गया द्रुत हो न पाया ह्रदय का स्पंदन
खिड़कियों के पट खुले ही रह गये, फिर भिड़ न पाये
तुम न आये
भिखारिन सेज थी ले आस का रीता पड़ा प्याला
हवायें आतुरा थी चूम पायें गंध की माला
रही निस्तब्धता व्याकुल भरे वह माँग रुनझुन से
निखर कर चान्दनी में रूप की मदमाये मधुशाला"
बहुत गलत बात है !! इतने सारे, इतने सुन्दर चित्र ! किसको मन में रखें, किसे आँखों में :)
मीरा बाई जी के गीतों का एक collection है 'चालां वाही देस' . उस CD को सुन के जिस व्यथा का अनुभव होता है वह आपके इस गीत में प्रतिबिंबित है.
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