tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post480347624476656541..comments2023-11-03T05:42:12.168-04:00Comments on गीत कलश: तुम न आयेराकेश खंडेलवालhttp://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-56263301618423456412009-06-01T09:43:02.404-04:002009-06-01T09:43:02.404-04:00"परे हो खिड़कियों के झांकती थी शाख से बदली
सजे ही र..."परे हो खिड़कियों के झांकती थी शाख से बदली<br />सजे ही रह गये अगवानियों के थाल,आरति कर न पाये<br /><br />सिमट कर रह गया मॄदुप्रीत का अरुणाभ आमंत्रण<br />निशा के अश्रुओं ने सींच कर महका दिया चन्दन<br />कसकती रह गईं भुजपाश की सूनी पड़ी साधें<br />शिथिल ही रह गया द्रुत हो न पाया ह्रदय का स्पंदन<br />खिड़कियों के पट खुले ही रह गये, फिर भिड़ न पाये<br />तुम न आये<br /><br />भिखारिन सेज थी ले आस का रीता पड़ा प्याला<br />हवायें आतुरा थी चूम पायें गंध की माला<br />रही निस्तब्धता व्याकुल भरे वह माँग रुनझुन से<br />निखर कर चान्दनी में रूप की मदमाये मधुशाला"<br /><br />बहुत गलत बात है !! इतने सारे, इतने सुन्दर चित्र ! किसको मन में रखें, किसे आँखों में :)<br /><br />मीरा बाई जी के गीतों का एक collection है 'चालां वाही देस' . उस CD को सुन के जिस व्यथा का अनुभव होता है वह आपके इस गीत में प्रतिबिंबित है.Shardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-86942408252705191322009-06-01T08:11:51.147-04:002009-06-01T08:11:51.147-04:00Adbhut !! Adwiteey !!
Shabd kahan jo prashansha k...Adbhut !! Adwiteey !!<br /><br />Shabd kahan jo prashansha kar sakun....रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-80547360899742390492009-06-01T03:40:40.236-04:002009-06-01T03:40:40.236-04:00ek behtareen sashakt rachna badhaaiek behtareen sashakt rachna badhaaiनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-17794792393301738422009-06-01T02:36:46.473-04:002009-06-01T02:36:46.473-04:00भिखारिन सेज थी ले आस का रीता पड़ा प्याला
हवायें आत...भिखारिन सेज थी ले आस का रीता पड़ा प्याला<br />हवायें आतुरा थी चूम पायें गंध की माला<br />रही निस्तब्धता व्याकुल भरे वह माँग रुनझुन से<br />निखर कर चान्दनी में रूप की मदमाये मधुशाला<br /><br />सांझे से सोये पखेरु जग गये फिर चहचहाये<br />तुम न आये<br /><br />उफ़ राकेश जी क्या लिखते हैं आप...अद्भुत...वाह...वा...मन जो अनुभव कर रहा है उसे शब्द नहीं मिल रहे...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-67863532249525776842009-05-31T22:17:22.886-04:002009-05-31T22:17:22.886-04:00:(:(Sharhttps://www.blogger.com/profile/16686072974110885189noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-15125972.post-89145529200053208572009-05-31T21:53:26.795-04:002009-05-31T21:53:26.795-04:00इतनी उम्दा और बेहतरीन रचना पर कमेंट काहे बंद रखे थ...इतनी उम्दा और बेहतरीन रचना पर कमेंट काहे बंद रखे थे कुछ देर. अच्छा किया जो आपने चालू कर दिया वरना तो हम तड़प कर रह गये होते. आभार कहूँ क्या..हा हा!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com