एक पागल और सूनी सी प्रतीक्षा के दिये को
मैं जला कर राह के इक मोड़ पर कब से खड़ा हूँ
सो गई है गूँज कर अब चाप भी अन्तिम पगों की
पाखियों ने ले लिये हैं आसरे भी नीड़ जाकर
धूप की बूढ़ी किरण, थक दूर पीछे रह गई है
और चरवाहा गया है लौट घर बन्सी बजाकर
पर लिये विश्वास की इक बूँद भर कर अंजलि में
मैं किसी के दर्शनों की ज़िद लिये मन में अड़ा हूँ
आ क्षितिज पर रुक गया है रात का पहला सितारा
जुगनुओं की सैकड़ों कन्दील जलने लग गई हैं
धार तट की बात तन्मय हो लगी सुनने निरन्तर
शाख पर की पत्तियां करवट बदलने लग गई हैं
आस वह इक स्पर्श पाये पाटलों जैसा सुकोमल
ओस बन कर मैं सदा जिसके लिये पल पल झड़ा हूँ
लग गया चौपाल पर हुक्का निरन्तर गुड़गुड़ाने
छेड़ दी आलाव पर दरवेश ने आकर कहानी
भक्त लौटे देव की दहलीज पर माथा टिका कर
जग गई है नींद से अँगड़ाई लेकर रातरानी
दृष्टि का विस्तार फिर भी हो असीमित रह गया है
सीढ़ियां, सीमायें देने के लिये कितनी चढ़ा हूँ
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
8 comments:
बहुत सुन्दर एवं अद्भुत रचना..बधाई!!!!
कितने सुन्दर बिम्ब हैं, मन पढते नहीं अघाता !
"सो गई है गूँज कर अब चाप भी अन्तिम पगों की"
"और चरवाहा गया है लौट घर बन्सी बजाकर"
"धार तट की बात तन्मय हो लगी सुनने निरन्तर"
"छेड़ दी आलाव पर दरवेश ने आकर कहानी
भक्त लौटे देव की दहलीज पर माथा टिका कर"
किसको पंक्ति को उद्धत करें, किसे छोडें :)
समूची कविता याद करने योग्य! बहुत धन्यवाद ! सादर--शार्दुला
सुंदर है कविवर!
आ क्षितिज पर रुक गया है रात का पहला सितारा
जुगनुओं की सैकड़ों कन्दील जलने लग गई हैं
धार तट की बात तन्मय हो लगी सुनने निरन्तर
शाख पर की पत्तियां करवट बदलने लग गई हैं
bahut sundar badhai
पर लिये विश्वास की इक बूँद भर कर अंजलि में
मैं किसी के दर्शनों की ज़िद लिये मन में अड़ा हूँ
सुंदर भाव पूर्ण रचना
वाह ! सदैव की भांति,मन को छूकर मंत्रमुग्ध करता अतिसुन्दर गीत.
" सो गई है गूँज कर अब चाप भी अन्तिम पगों की
पाखियों ने ले लिये हैं आसरे भी नीड़ जाकर
धूप की बूढ़ी किरण, थक दूर पीछे रह गई है
और चरवाहा गया है लौट घर बन्सी बजाकर "
धुप की बूढी किरण......इस सार्थक बिम्ब ने मन मोह लिया. भाव, भाषा,शब्द प्रवाह,बिम्ब विधान ......सब अप्रतिम.
बहुत सुन्दर बेहतरीन गीत!
बहुत-बहुत बधाई हर पंक्ति खूबसूरत है।
धार तट की बात तन्मय हो लगी सुनने निरन्तर
शाख पर की पत्तियां करवट बदलने लग गई हैं
शाख पर की पत्तियां करवट बदलने लग गई हैं
क्या बात है! बहुत ही सुन्दर
"पर लिये विश्वास की इक बूँद भर कर अंजलि में
मैं किसी के दर्शनों की ज़िद लिये मन में अड़ा हूँ"
----
"आस वह इक स्पर्श पाये पाटलों जैसा सुकोमल
ओस बन कर मैं सदा जिसके लिये पल पल झड़ा हूँ"
:)
Post a Comment