राह के इक मोड़ पर कब से खड़ा हूँ

एक पागल और सूनी सी प्रतीक्षा के दिये को
मैं जला कर राह के इक मोड़ पर कब से खड़ा हूँ

सो गई है गूँज कर अब चाप भी अन्तिम पगों की
पाखियों ने ले लिये हैं आसरे भी नीड़ जाकर
धूप की बूढ़ी किरण, थक दूर पीछे रह गई है
और चरवाहा गया है लौट घर बन्सी बजाकर

पर लिये विश्वास की इक बूँद भर कर अंजलि में
मैं किसी के दर्शनों की ज़िद लिये मन में अड़ा हूँ

आ क्षितिज पर रुक गया है रात का पहला सितारा
जुगनुओं की सैकड़ों कन्दील जलने लग गई हैं
धार तट की बात तन्मय हो लगी सुनने निरन्तर
शाख पर की पत्तियां करवट बदलने लग गई हैं

आस वह इक स्पर्श पाये पाटलों जैसा सुकोमल
ओस बन कर मैं सदा जिसके लिये पल पल झड़ा हूँ

लग गया चौपाल पर हुक्का निरन्तर गुड़गुड़ाने
छेड़ दी आलाव पर दरवेश ने आकर कहानी
भक्त लौटे देव की दहलीज पर माथा टिका कर
जग गई है नींद से अँगड़ाई लेकर रातरानी

दृष्टि का विस्तार फिर भी हो असीमित रह गया है
सीढ़ियां, सीमायें देने के लिये कितनी चढ़ा हूँ

8 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर एवं अद्भुत रचना..बधाई!!!!

Shardula said...

कितने सुन्दर बिम्ब हैं, मन पढते नहीं अघाता !

"सो गई है गूँज कर अब चाप भी अन्तिम पगों की"
"और चरवाहा गया है लौट घर बन्सी बजाकर"
"धार तट की बात तन्मय हो लगी सुनने निरन्तर"
"छेड़ दी आलाव पर दरवेश ने आकर कहानी
भक्त लौटे देव की दहलीज पर माथा टिका कर"

किसको पंक्ति को उद्धत करें, किसे छोडें :)
समूची कविता याद करने योग्य! बहुत धन्यवाद ! सादर--शार्दुला

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

सुंदर है कविवर!

mehek said...

आ क्षितिज पर रुक गया है रात का पहला सितारा
जुगनुओं की सैकड़ों कन्दील जलने लग गई हैं
धार तट की बात तन्मय हो लगी सुनने निरन्तर
शाख पर की पत्तियां करवट बदलने लग गई हैं
bahut sundar badhai

रंजू भाटिया said...

पर लिये विश्वास की इक बूँद भर कर अंजलि में
मैं किसी के दर्शनों की ज़िद लिये मन में अड़ा हूँ

सुंदर भाव पूर्ण रचना

रंजना said...

वाह ! सदैव की भांति,मन को छूकर मंत्रमुग्ध करता अतिसुन्दर गीत.

" सो गई है गूँज कर अब चाप भी अन्तिम पगों की
पाखियों ने ले लिये हैं आसरे भी नीड़ जाकर
धूप की बूढ़ी किरण, थक दूर पीछे रह गई है
और चरवाहा गया है लौट घर बन्सी बजाकर "

धुप की बूढी किरण......इस सार्थक बिम्ब ने मन मोह लिया. भाव, भाषा,शब्द प्रवाह,बिम्ब विधान ......सब अप्रतिम.

सुनीता शानू said...

बहुत सुन्दर बेहतरीन गीत!
बहुत-बहुत बधाई हर पंक्ति खूबसूरत है।
धार तट की बात तन्मय हो लगी सुनने निरन्तर
शाख पर की पत्तियां करवट बदलने लग गई हैं

शाख पर की पत्तियां करवट बदलने लग गई हैं
क्या बात है! बहुत ही सुन्दर

Shar said...

"पर लिये विश्वास की इक बूँद भर कर अंजलि में
मैं किसी के दर्शनों की ज़िद लिये मन में अड़ा हूँ"
----
"आस वह इक स्पर्श पाये पाटलों जैसा सुकोमल
ओस बन कर मैं सदा जिसके लिये पल पल झड़ा हूँ"
:)

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...