सांझ आई हो गये जब सुरमई दिन के उजाले
खिड़कियों पर आ गये उड़ कर पखेरू याद वाले
छेड़ दी आलाव पर सारंगियों ने फिर कहानी
चंग बमलहरी बजाने लग गये फिर गीत गा कर
बिछ गईं नजरें बनी कालीन आगंतुक पगों को
स्वप्न के दरवेश नभ में आ गये पंक्ति बनाकर
कुछ सितारे झिलमिलाये ओढ़ कर आभा नई सी
ज्यों किसी नीहारिका ने झील में धोकर निकाले
वे विभायें झांकती सी चूनरी से चन्द्रमा की
नैन में अंगड़ाईयां लेती हजारों कल्पनायें
पा बयारी स्पर्श रह रह थरथराता गात कोमल
पूर्णता पाती हुइ मन की कुंआरी भावनायें
और मुख को चूमते रह रह उमड़ते केश काले
खिड़कियों पर आ गये उड़ कर पखेरू याद वाले
गंध की बरसात करते वे खिले गेंदा चमेली
आरती की गूँज, गाती भोर की बन कर सहेली
मंत्र की ध्वनियां नदी के तीर पर लहरें बनाती
नीर से भीगी हिना के रंग में डूबी हथेली
तारकों की छांह से वे ओस के भरते पियाले
खिड़कियों पर आ गये उड़ कर पखेरू याद वाले
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7 comments:
खिड़कियों पर आ गये उड़ कर पखेरू याद वाले
अद्भुत...चमत्कारिक छंद रचना...वाह...वा...
नीरज
बेहद खूबसूरत कविता है,
कुछ सितारे झिलमिलाये ओढ़ कर आभा नई सी
ज्यों किसी नीहारिका ने झील में धोकर निकाले
क्या कल्पना है...रूमानियत से सराबोर. अनोखा है आपके लिखने का अंदाज़. शब्द जैसे जादू सा असर करते हैं.
"पखेरू याद वाले"
Ati Sunder !!
प्रथम पंक्तियां ही बहुत खूबसूरत है...
आपकी रचनाओं के लिए शब्दों में कुछ व्यक्त करना मेरे लिए सदैव ही कठिन रहा है।
हाँ, रचनाओं के रसास्वादन का जहां तक संबंध है, मेरा स्वार्थी मन समय समय पर इस कार्य में पीछे नहीं रहता।
आपके काव्य में अभिव्यक्ति का निराला ढंग अपना स्वतंत्र लावण्य रखता है। ध्वन्यात्मकता, लाक्षणिकता, सौंदर्य प्रकृति विधान और कल्पना प्रवणता, युगानुरूप वेदना 'पीर मन की बोलती है, मगर गाती नहीं है-२५ नवंबर' सुंदर उदाहरण है। सौंदर्य की अनुभूति के साथ ही करुणा की अनुभूति भी हुई।
'कुछ सितारे झिलमिलाये ओढ़ कर आभा नई सी
ज्यों किसी नीहारिका ने झील में धोकर निकाले'
आनंद आ गया।
सांझ आई हो गये जब सुरमई दिन के उजाले
खिड़कियों पर आ गये उड़ कर पखेरू याद वाले
शब्दों ने ऐसे भावचित्र खींचे हैं कि सबकुछ नयनाभिराम हो गया..........
अद्भुद प्रवाहमयी गीत ! मंत्रमुग्ध कर दिया.
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