छलक रही शब्दों की गागर
संध्या भोर और निशि-वासर
दोहे, मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद
घुलने लगा कंठ में सुरभित पुष्पों का मकरंद
भरने लगा आंजुरि मे अनुभूति का गंगाजल
लगा लिपटने संध्या से आ मॆंहदी का आँचल
ऊसर वाले फूलों में ले खुश्बू अँगड़ाई
मरुथल के पनघट पर बरसा सावन का बादल
करने लगी बयारें, पत्रों से नूतन अनुबंध
दोहे मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद
लहराई वादी में यादों की चूनर धानी
नदिया लगी उछलने तट पर होकर दीवानी
सुर से बँधी पपीहे के बौराई अमराई
हुए वावले गुलमोहर अब करते मनमानी
वन-उपवन में अमलतास की भटकन है स्वच्छंद
घुलने लगा कंठ में सुरभित पुष्पों का मकरंद
रसिये गाने लगीं मत्त भादों की मल्हारें
अँगनाई से हंस हंस बातें करतीं दीवारें
रंग लाज का नॄत्य करे आरक्त कपोलों पर
स्वयं रूठ कर स्वयं मनायें खुद को मनुहारें
एक एक कर लगे टूटने मन के सब प्रतिबंध
दोहे मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
जाते जाते सितम्बर ने ठिठक कर पीछे मुड़ कर देखा और हौले से मुस्कुराया. मेरी दृष्टि में घुले हुये प्रश्नों को देख कर वह फिर से मुस्कुरा दिया ...
9 comments:
bahut achcha.....
dil ko chune waala
बेहतरीन---जबरदस्त-ठाँय ठाँय!!! आनन्द आ गया महाप्रभु॒!!!
लहराई वादी में यादों की चूनर धानी
नदिया लगी उछलने तट पर होकर दीवानी
सुर से बँधी पपीहे के बौराई अमराई
हुए वावले गुलमोहर अब करते मनमानी
सुंदर भाव और सुंदर बिम्ब .
करने लगी बयारें, पत्रों से नूतन अनुबंध
दोहे मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद
बहुत सुन्दर गीत है। और उपरोक्त पंक्तियाँ तो लाजवाब।
रंग लाज का नॄत्य करे आरक्त कपोलों पर
स्वयं रूठ कर स्वयं मनायें खुद को मनुहारें
एक एक कर लगे टूटने मन के सब प्रतिबंध
waah ...!
राकेश जी वाह...क्या शब्द हैं...क्या भाव हैं...अद्भुत आनद की प्राप्ति हुई पढ़ कर...
नीरज
आपको तो गोड गिफ़्ट है यह भाईसाहब, मै तो बस पढ़ती ही रह जाती हूँ,हर पंक्ति इतनी खूबसूरत है कि क्या लिखूँ,मगर मुझे यह बहुत आई...
भरने लगा आंजुरि मे अनुभूति का गंगाजल
लगा लिपटने संध्या से आ मॆंहदी का आँचल
ऊसर वाले फूलों में ले खुश्बू अँगड़ाई
मरुथल के पनघट पर बरसा सावन का बादल
सादर
रसिये गाने लगीं मत्त भादों की मल्हारें
अँगनाई से हंस हंस बातें करतीं दीवारें
रंग लाज का नॄत्य करे आरक्त कपोलों पर
स्वयं रूठ कर स्वयं मनायें खुद को मनुहारें
एक एक कर लगे टूटने मन के सब प्रतिबंध
दोहे मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद
वाह बहुत सुन्दर लिखा है।
एक एक कर लगे टूटने मन के सब प्रतिबंध
दोहे मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद
बहुत बढ़िया गीत है
venus kesari
Post a Comment