खिले गीत के छंद

छलक रही शब्दों की गागर
संध्या भोर और निशि-वासर
दोहे, मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद
घुलने लगा कंठ में सुरभित पुष्पों का मकरंद

भरने लगा आंजुरि मे अनुभूति का गंगाजल
लगा लिपटने संध्या से आ मॆंहदी का आँचल
ऊसर वाले फूलों में ले खुश्बू अँगड़ाई
मरुथल के पनघट पर बरसा सावन का बादल

करने लगी बयारें, पत्रों से नूतन अनुबंध
दोहे मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद

लहराई वादी में यादों की चूनर धानी
नदिया लगी उछलने तट पर होकर दीवानी
सुर से बँधी पपीहे के बौराई अमराई
हुए वावले गुलमोहर अब करते मनमानी

वन-उपवन में अमलतास की भटकन है स्वच्छंद
घुलने लगा कंठ में सुरभित पुष्पों का मकरंद

रसिये गाने लगीं मत्त भादों की मल्हारें
अँगनाई से हंस हंस बातें करतीं दीवारें
रंग लाज का नॄत्य करे आरक्त कपोलों पर
स्वयं रूठ कर स्वयं मनायें खुद को मनुहारें

एक एक कर लगे टूटने मन के सब प्रतिबंध
दोहे मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद

9 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

bahut achcha.....
dil ko chune waala

Udan Tashtari said...

बेहतरीन---जबरदस्त-ठाँय ठाँय!!! आनन्द आ गया महाप्रभु॒!!!

रंजू भाटिया said...

लहराई वादी में यादों की चूनर धानी
नदिया लगी उछलने तट पर होकर दीवानी
सुर से बँधी पपीहे के बौराई अमराई
हुए वावले गुलमोहर अब करते मनमानी

सुंदर भाव और सुंदर बिम्ब .

admin said...

करने लगी बयारें, पत्रों से नूतन अनुबंध
दोहे मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद

बहुत सुन्दर गीत है। और उपरोक्त पंक्तियाँ तो लाजवाब।

कंचन सिंह चौहान said...

रंग लाज का नॄत्य करे आरक्त कपोलों पर
स्वयं रूठ कर स्वयं मनायें खुद को मनुहारें

एक एक कर लगे टूटने मन के सब प्रतिबंध
waah ...!

नीरज गोस्वामी said...

राकेश जी वाह...क्या शब्द हैं...क्या भाव हैं...अद्भुत आनद की प्राप्ति हुई पढ़ कर...
नीरज

सुनीता शानू said...

आपको तो गोड गिफ़्ट है यह भाईसाहब, मै तो बस पढ़ती ही रह जाती हूँ,हर पंक्ति इतनी खूबसूरत है कि क्या लिखूँ,मगर मुझे यह बहुत आई...
भरने लगा आंजुरि मे अनुभूति का गंगाजल
लगा लिपटने संध्या से आ मॆंहदी का आँचल
ऊसर वाले फूलों में ले खुश्बू अँगड़ाई
मरुथल के पनघट पर बरसा सावन का बादल
सादर

शोभा said...

रसिये गाने लगीं मत्त भादों की मल्हारें
अँगनाई से हंस हंस बातें करतीं दीवारें
रंग लाज का नॄत्य करे आरक्त कपोलों पर
स्वयं रूठ कर स्वयं मनायें खुद को मनुहारें

एक एक कर लगे टूटने मन के सब प्रतिबंध
दोहे मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद
वाह बहुत सुन्दर लिखा है।

Anonymous said...

एक एक कर लगे टूटने मन के सब प्रतिबंध
दोहे मुक्तक और सवैये, खिले गीत के छंद

बहुत बढ़िया गीत है

venus kesari

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