दॄष्टि के चुम्बनों ने छुआ जब मुझे
खिलखिलाने लगी देह में रागिनी
सिक्त मधु की फ़ुहारों से होकर नजर
आई हौले से मेरे नयन द्वार पर
ओट से चिलमनों की सरकती हुई
सारी बाधाओं को पंथ की पार कर
साथ अपने लिये एक मुस्कान की
जगमगाती हुई दूधिया रोशनी
दृश्य ले साथ में एक उस चित्र का
दांत में जब उलझ रह गई ओढ़नी
मेरी अनुभूतियों की डगर पर बिछी
पूर्णिमा की बरसती हुई चांदनी
ओस भीगी हुई पांखुरी सा परस
बिजलियां मेरे तन में जगाने लगा
धमनियों में घुलीं सरगमें सैंकड़ों
कतरा कतरा लहू गुनगुनाने लगा
धड़कनों में हजारों दिये जल गये
सांस सारंगियों को बजाने लगी
बँध गया पूर्ण अस्तित्व इक मंत्र में
एक सम्मोहिनी मुझपे छाने लगी
कर वशीभूत मन, वो लहरती रही
वह नजर एक अद्भुत लिये मोहिनी
चेतना एक पल में समाहित हुई
स्वप्न अवचेतनायें सजाने लगीं
वादियों में भटकती सुरभि पुष्प की
मानचित्रों को राहें बताने लगीं
ढाई अक्षर कबीरा के उलझे हुए
व्याख्यायें स्वयं अपनी करने लगे
चित्र लिपटे कुहासे में अंगनाई के
मोरपंखी रँगों से सँवरने लगे
कल्पना के सुखद एक आभास में
आज सुधियाँ हुईं मेरी उन्मादिनी.
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12 comments:
बहुत सुंदर रचना राकेश भाई:
कर वशीभूत मन, वो लहरती रही
वह नजर एक अद्भुत लिये मोहिनी
-वाह!!
aao tumhen ek cazal sunata hun, jise gungunaya hai pyar me maine.
sheeshe ki deewar pe rakh ke sir,
jise sulaya hai majar me maine.
mohan lal gupta.
अद्भुत, अप्रतिम...
बँध गया पूर्ण अस्तित्व इक मंत्र में
एक सम्मोहिनी मुझपे छाने लगी
बहुत सुंदर रचना है प्रेम की अधिकता का दर्शाती हुई। बहुत-बहुत बधाई।
बहुत खूब!
राकेश जी,
वाहSSSS……………।
दृष्टि का……। क्या संकेत है…।
बस ध्यान को ध्यय करने की जरुरत है…बहुत खुब अनूठा रस से विभोर है।
राकेश जी,.......
शब्द आपने सभी ले लिये कैसे कहें मौन है हम,
प्रेम रस में डूब गये है,नही जानते कौन है हम...
बेहद सुंदर,
सुनीता(शानू)
ओस भीगी हुई पांखुरी सा परस
बिजलियां मेरे तन में जगाने लगा
धमनियों में घुलीं सरगमें सैंकड़ों
कतरा कतरा लहू गुनगुनाने लगा
धड़कनों में हजारों दिये जल गये
सांस सारंगियों को बजाने लगी
बँध गया पूर्ण अस्तित्व इक मंत्र में
एक सम्मोहिनी मुझपे छाने लगी
राकेश जी प्रेम रस से सराबोर रचना पढ कर मन आन्नदित हो गया
अति सुंदर!
भावों से ओत-प्रोत शब्दों ने सारी कविता को जैसे सजीव कर दिया है।
दृश्य ले साथ में एक उस चित्र का
दांत में जब उलझ रह गई ओढ़नी
भावों को शब्दों की खूबसूरत पोशाक पहनाना कोई आपसे सीखे...!!
बहुत सुंदर लिखते हैं आप .पढ़ के अच्छा लगता है
आपका एक यह स्नेह है जो मुझे, नित्य लिखने को तत्पर किये जा रहा
बस लिखा है वही कुछ नजर जो मुझे, आपकी प्रेरणा से नजर आ रहा
कामना जब हॄदय से करें, प्रस्फ़ुटित शब्द होते स्वयं कामना के लिये
जो कि होठों पे खुद आ गया है मेरे, एक अहसास बस वो ही मैं गा रहा
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