नये संवत की शुभकामनायें

झील की लहरों पर बिखरता है स्वर्ण
पत्तों पर छा रहा नया नया वर्ण
अँगड़ाई लेते हैं कोयल के गीत
अलगोजे छेड़ रहे मधुरिम संगीत
आँगन में उतर रही सोनहली धूप
संध्या के दर्पण में नया नया रूप
पुरबा की चूनर में मलयज की शान
कलियों के चेहरों पर आई मुस्कान
पगडंडी है लदी हुई गाड़ियों भरी
सरसों की दुल्हन अब पालकी चढ़ी
निशिगंधा खोल रही महकों के द्वार
खुनक भरे मौसम में डूबा घरबार
भरा प्रेम पत्रों से मेंहदी ने हाथ
छत ने की आँगन से मीठी सी बात
ठिठुरन पर आज चढ़ा देखिये बुखार
चैती इस पड़वा ने खड़काया द्वार.
नव संवत की शुभकामनायें

7 comments:

Udan Tashtari said...

इस बहुत खूबसूरत गीत की बधाई के साथ आपको भी नव संवत की शुभकामनायें.

Anonymous said...

आपको भी बहुत शुभकामनायें.

अरुणिमा गुप्ता

Dr.Bhawna Kunwar said...
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Dr.Bhawna Kunwar said...
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Dr.Bhawna Kunwar said...
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Dr.Bhawna Kunwar said...

राकेश जी हर उपमा एक से बढकर एक है बहुत अच्छा गीत है।
आपको भी शुभकामनायें
ऐसे ही रोज गीत सुनायें।

Dr.Bhawna Kunwar said...

राकेश जी हर उपमा एक से बढकर एक है बहुत अच्छा गीत है।
आपको भी शुभकामनायें
रोज ऐसे ही गीत सुनायें।

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