जिसकी सुंदरता का वर्णन शब्दों में सिमट नहीं पाता
वाणी असमर्थ रही कहने में जिस चिर यौवन की गाथा
प्रकॄति ने अपना रूप पूर्ण जिस प्रतिमा में साकार किया
शतरूपे हर इक कविता में तुमसे ही काव्य उपज पाता
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उर्वशी ने कर दिये हस्ताक्षर जिसके अधर पर
और सम्मोहन सिखाया मेनका ने ही स्वयं हो
बान्ध कर नूपुर पगों में नॄत्य रम्भा ने सिखाया
एक कवि की कल्पना की कल्पना शायद तुम्ही हो.
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नव वर्ष २०२४
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7 comments:
ये क्या हुआ, भाई जी, मौसम तो खराब है. तबियत तो ठीक है न!! :)
राकेश जी,
बहुत सुन्दर !!
क्या हुआ राकेश जी…
मदमस्त कर दिया…!!
अब समझ गये-महिला दिवस विशेष है यह! :)
धन्यवाद बेजी और दिव्याभ,
समीर भाई आखिर आपने पहचान ही लिया :-)
बहुत सुन्दर राकेश जी।
JUB RAAT HAI ITNI MATWARI
TO SUBAH KAA AALAM KYA HOGA..
BAHUT BADHIYA LIKHA HAE RAKESH JI AAPNE
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