गीत बन मेरे अधर पर

 गीत बन मेरे अधर पर 



शब्द जो ख़ुद ही सँवरते गीत बेन मेरे अधर पर

हो गये मुझसे अपरिचित आज क्यों? कोई बताये 

व्याकरण की  वीथियों में ले प्रतीक्षा साथ अपने
कुछ कहारी  अक्षरों के रह गए  मज़बूत कंधे 
बैठ ना पाई मगर उपमाओं से शृंगारि करके
शब्द की दुल्हन, रहे सारे अलंकण भी अधूरे 

अल्पना दहलीज़ की पर, पार कर पाया अलकटक
खींच लेता कौन वापिस कोई तो मुझको बताये 

 थी तनी कदली तानो पर व्यंजना की एक चादर
लक्षण ने थे रचे बूटे हथेली में हिना के 
गूंजती शहनाई ने छेडी  विदाई की धुनें पर
पाँव बांधे ही रहे सब दायरे वर्जना 

साध की कलियाँ झाड़ो हैं नींद खुलने से प्रथम जीm
कर रही है उम्र क्यों षड्यंत्र, कोई यह बताये 

छंद दोहे सोरठे  के नेत्र उत्सुकता भरे थे
अंतरों की देह पर इक चाँद का मुखड़ा सही आ
तार सप्तक के सभी स्वर, साथ आतुरा ही रह गए थे 
स्पर्श पा कर उँगलियप्न का राग ख़ुद ही बज उठेगा

पर निराशा की  घनी झंझाएँ कैसे उठ गई हैं
इन बहारों की ऋतु में, कोई यह मुझको बताये 


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