नई भोर की अगवानी में

जीवन की उलझी राहों में

आज विदा देकर रजनी को
नई भोर की अगवानी में
पूरे अड़सठ दीप जलाए 

 

आज तिमिर के अवशेषों को
नदिया की धारा पर दौने में
रखकर के सहज बहाया 
और नया इक दीप जलाया 

 

नवल  आस की फसल उग सके
साँसों की सुरभित क्यारी में
धड़कन के कुछ बीज बो रहा 
और सपन अंकुरित हो रहा

 

तय हो चुकी राह की दुविधा
आगे बढ़ते हुए नकारी 
आगत के जलकलश सजा कर
छिड़के द्वारे पर  छलका कर 

 

विगत और आगत दवारे पर
दहलीज़ों के संधिपत्र पर
आज कर रहे हैं हस्ताक्षर 
राही चल, बस निस्पृह होकर 

 


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