कोई संकेत देता रहा

 कौन संकेत देता रहा साँझ से

आँजने के लिए
चंद  मधुरिम सपन 

ज्यों ही अंतिम चरण
आ गया मंच पर 
दिन के अभिनीत
होते हुए दृश्य का
और तैयार होती 
हुई साँझ ने 
फिर से दुहराई 
अपनी चुनी भूमिका

एक तीली उठी आँख
मलते हुए
जागने लग पड़ी
वर्तिका में अग़न

कौन संकेत देता रहा 

झाड़ियों में घिरे 
झूटपटे में कहीं 
बूँद बन गिर रही
यों लगा चंद्रिका 
स्वर उमड़ते हुए
बादलों से घिरे
देते आभास 
गूंजित हुए गीत का 

मोड़ से देखते 
मुस्कुराते हुए
सुरमई रात के 
काजरी  दो नयन 

कौन संकेत देता रहा 

सीढ़ियाँ चढ़ते चढ़ते
रुकी रात जब
छत के विस्तार को
नापने के लिए
कुछ सितारे रहे
इक प्रतीक्षा लिए
चूनरी का सिरा 
थामने के लिए 

पाँव लेकिन थमे 
उठ न पाए तनिक 
उनको जकड़े रही
एक वासी थकन 

कोई संकेत देता रहा 



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