आशाओं के नए सूर्य को अब दिशिबोध लिखें
नई नीति के संकल्पों का हम संबोध लिखें
बीता बरस साथ लाया था पृष्ठ सियाही के
जो था लेखा जोखा सारा अंधकार में खोया
दिन की धूप चुरा ले जाती रही, भरी दोपहरी
और रात का एकाकीपन रिस नयनों से रोया
उगी भोर हाथों में लेकर प्रश्नपत्र थी भटकी
कोई सुलझा सकने वाला उसको मिला नहीं था
नई नीति के संकल्पों का हम संबोध लिखें
बीता बरस साथ लाया था पृष्ठ सियाही के
जो था लेखा जोखा सारा अंधकार में खोया
दिन की धूप चुरा ले जाती रही, भरी दोपहरी
और रात का एकाकीपन रिस नयनों से रोया
उगी भोर हाथों में लेकर प्रश्नपत्र थी भटकी
कोई सुलझा सकने वाला उसको मिला नहीं था
संध्या घर लौटी राहों में पूरा दिवस गँवा कर
रीता हाथों का कासा आख़िर तक भी रीता था
नव आशा के दीप जला अगवानी को थाली में
बिखरे कल के कलुषों का मिल कर प्रतिरोध लिखें
रीता हाथों का कासा आख़िर तक भी रीता था
नव आशा के दीप जला अगवानी को थाली में
बिखरे कल के कलुषों का मिल कर प्रतिरोध लिखें
गया बरस बीता उजाड़ कर सपनों की फ़सलो को
बड़े चाव से जो साधों ने आँखो में बोई थी
आगे बढ़ते हुए कदम पीछे को वापिस लौटे
बिछी सामने राह स्वयं में ही जैसे खोई थी
पीछे छोड़ा जिसे हुआ वो घर भी अब अनजाना
रिश्ते फिर से जुड़े नहीं सब परिचित चहरे खोये
चुगता रहा वक्त का पाखी अपने पर फैलाकर
बीज दिलासों के जितने भी मन ने मन में बोये
कोरा नया कैनवास अब यह नया वर्ष लाया है
आओ हम तुम मिल कर इस पार्ट नव अनुरोध लिखें
स्वस्ति मंत्र अधरों पर लेकर हम सब करें प्रतीक्षा
अभिलाषाएँ नवल अल्पना से रच दें दहलीज़ें
मानचित्र से गए वर्ष के सब पदचिह्न मिटाकर
नए पंथ अब चित्रित कर दे पौष कृष्ण की तीजें
नई आस के नव स्वप्नों में इंद्रधनुष की आभें
भर कर, सुरमा करके अपनी आँखों में फिर आँजें
उगते हुए दिवस की अरुणाई से सुबह संवारें
और सिंदूरी चूनर से सज्जित कर रख लें साँचें
कुंठा, क्षोभ, हताशा,हतप्रभता को आज भुलाकर
नए पृष्ठ पर नई उमंगों का नव शोध लिखें
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