मार्ग से परिचय नहीं है


मार्ग से परिचय नहीं है किंतु फिर भी चल रहा हूँ
मैं पथिक, मेरी नियति है पंथ पर चलना निरंतर

दूरियाँ तो मंज़िलों की उठ रहे पग  ही बढ़ाते  
बँट चुकी सारी दिशाएँ परिधियों के वृत्त तक जा
और चलना है कहाँ तक ये अकेला एक निर्णय
वह टिका  है बस पथिक के निश्चयों के केंद्र पर आ​ ​

एक निष्ठा और इक संकल्प पथ में साथ हों जब
मार्ग की बाधाए सारी देखती हैं दूर हट कर

चल रही झंझायें थम लें, है नहीं मुझको प्रतीक्षा
पंथ में गतिरोध मेरा कोई कर सकता नहीं है
लक्ष्य की आराधना में खंड कर सुधियाँ चला मैं
नीड़ से पहले कहीं रुकना ,मेरी ​ गति में  नहीं है

नीड़ में विश्रांति के पल बस गिने कुछ ही निशा के
भोर नित पाथेय देती हाथ में मुझको, सजा कर

विहगों​ ​के अल्हड़ कलरव​ ​
 का है संगीत साथ में मेरे
उगी धूप की अंगड़ाई से व्योम धरा सब धुले धुले हैं
हो जीवंत मुझे रहना है गतिमय चुने हुए इस पथ पर
मेरे लिए प्रतीक्षित मंज़िल के द्वारे​ ​ सब खुले खुले हैं

मार्ग से परिचय नहीं है, मंज़िलें तो हैं सुनिश्चित​ ​
एक मिलती, दूसरी फिर सामने आती नि​खर कर 


राकेश​ खंडेलवाल
१५ अप्रेल २०२०​

No comments:

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...