तुमने मुझसे पूछा क्या है रिश्ता मेरा और तुम्हारा
मुश्किल हुआ शब्द दे पायें तुमको इसका उत्तर सारा
फूलों का गंधो से जो है, नदिया का बहते पानी से
तट से जो नाता सिकता का, पत्तों का है शाखाओं से
तुमसे मेरा रिश्ता प्रियवर कुछ ऐसा ही सम्बंधित है
किसी तपस्वी का ज्यों तप से या यज्ञों का समिधाओं से
आरति से ज्यों बँधा हुआ है मंत्रों का स्वर गया उचारा
सच कहता हूँ मीत यही है रिश्ता मेरा और तुम्हारा
पूनम की रातों का रिश्ता बिखरी हुई ज्योत्सनाओं से
जुड़ी हुई वल्गायें सूरज के रथ की ज्यों खिली धूप से
उद्यापन का नैवेद्यों से और समर्पण से जो रिश्ता
रिश्ता तुमसे मेरा ऐसे बौद्ध मठों का ज्योंकि स्तूप से
साहूकार से समबन्धित ज्यों कर्जदार के घर का द्वारा
वैसे ही तो है शतरूपे रिश्ता मेरा और तुम्हारा
कलासाधिके ! हर रिश्ता कब परिभाषित होने पाया है
मेरा और तुम्हारा रिश्ता- छंदों का रिश्ता गीतों से
मंदिर से जो गंगाजल का, मदिरा का जो पैमाने से
रिश्ता मेरा और तुम्हारा,संस्कृतियों का जो रीतों से
नीरजनयने असफ़ा रहे ग्रंथ जिसका उत्तर देने में
उसी प्रश्न में गूँथा हुआ है रिश्ता मेरा और तुम्हारा
राकेश खंडेलवाल
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