उषा की डोली के संग संग घिरता है अँधियारा
संध्या तक बेचारा सूरज फिरता मारा मारा
किससे करे शिकायत, सत्ताधीश हुए हैं बहरे
राजमहल के राजमार्ग पर लगे हुए हैं पहरे
आश्वासन के मेघ बरसते, बिन पल भर डैम साढ़े
और कुमकुमे सारे ही उनके बंगलों में ठहरे
बरस बीतने पर बदले ऋतु , आशा दिए सहारा
अभी आजकल दोपहरी में भी घिरता अँधियारा
राजनीति के दांव पेंच में सत्य नकारा जाता
बढ़ाते विश्व तापक्रम को भी अब झुठलाया जाता
घिरते हुए प्रभंजन, चक्रवात एवं अति वृष्टि
प्राकृतिक विपदाएं कह कह कर समझाया जाता
आने वाली पीढ़ी की किस्मत मेम है जल खारा
उनकी जन्मकुंडली पर यों घिरता है अंधियारा
बरसो बीते राह जोहते भोर नई कल आए
मेघाच्छादित अम्बर में सूरज किरणें बिखराए
दर्पण पर जम गई धूल को पौंछे आ पूरबाइ
देश विदेश भटकता कोई घर वापिस आ जाए
किंतु बुझा हर दीप आस का स्नेह चूक गया सारा
शंनैः: शनै: हर एक दिशा में घिरता ही अंधियारा
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