पत्थरों पर गीत लिक्खे आज तक जो शिल्पियों ने
है तुम्हारे रूप की आराधना का एक उपक्रम
बन गए है ताज कितने रंग गई कितनी अजंता
और फिर कोणार्क ने कितनी सुनाई है कहानी
शिल्प खजूराइ निरंतर गढ़ रहा प्रतिमाएँ जितनी
रूप के सागर,कथा के एक पन्ने की निशानी
कर समाहित शब्दकोशों की सभी उपमाए लिखा
किंतु कर पाए नहीं इक अंश का भी पूर्ण वर्णन
गीत लिक्खे पत्थरों पे रच अहल्याए युगों ने
शिल्प ने बन राम की पदरज उन्हें आकर सँवारा
वह तनिक संशोधनों का ही परस था गीत तन को
संतुलित कर मात्राएँ, गेयता को था निखरा
लिख रही है जान्हवी जो घाट पर वाराणसी के
है तुम्हारे रूप की आराधना का एक उपक्रम
बन गए है ताज कितने रंग गई कितनी अजंता
और फिर कोणार्क ने कितनी सुनाई है कहानी
शिल्प खजूराइ निरंतर गढ़ रहा प्रतिमाएँ जितनी
रूप के सागर,कथा के एक पन्ने की निशानी
कर समाहित शब्दकोशों की सभी उपमाए लिखा
किंतु कर पाए नहीं इक अंश का भी पूर्ण वर्णन
गीत लिक्खे पत्थरों पे रच अहल्याए युगों ने
शिल्प ने बन राम की पदरज उन्हें आकर सँवारा
वह तनिक संशोधनों का ही परस था गीत तन को
संतुलित कर मात्राएँ, गेयता को था निखरा
लिख रही है जान्हवी जो घाट पर वाराणसी के
रूप के शत लक्ष जो आयाम उन से एक वंदन
पत्थरों पर गीत लिक्खे जो समय की करवटों ने
वे अमिट हैं लेख संस्कृति के शिलाओं पर थिरकते
जल प्रपातों ने कलम बन कर लिखे हैं घाटियों में
वे सुबह से साँझ तक गाती हुई धुन में संवरते
शब्द शिल्पी ! आज जब तुम हाथ में थामो कलम तो
इस तरह लिखना रहे इतिहास में बन शैल अंकन
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