रहा सदा अपने से ही तो
यह संघर्ष हमारा
किंससे करे शिकायत
जब हम सब ही अपराधी है
हल की जगह , दोष
रोपण करने के ही आदी हैं
जब हम सब ही अपराधी है
हल की जगह , दोष
रोपण करने के ही आदी हैं
कर लें क्यों स्वीकार
टूटता ओढ़ा दर्प हमारा
जो हो गए विमुख
वे सब भी थे चुनाव अपना ही
किरच किरच हो कर
बिखरा वह था सपना अपना ही
वे सब भी थे चुनाव अपना ही
किरच किरच हो कर
बिखरा वह था सपना अपना ही
बढा चक्र वृद्धि, साँसों पर
प्रति पल क़र्ज़ हमारा
उँगली एक उठा, कब देखी
दिशा शेष चारों की
नजर रही सीमित, सुर्खी
तक केवल, अख़बारों की
दिशा शेष चारों की
नजर रही सीमित, सुर्खी
तक केवल, अख़बारों की
रहा पान की दूक़ानों पर
होता तर्क हमारा
रहा सदा अपने से ही तो
यह संघर्ष हमारा
यह संघर्ष हमारा
© राकेश खंडेलवाल
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